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स्वयं की दुनियां

स्वयं की दुनियां

आँखो से क्या कह दिया
जिससे मन मचल उठा। 
दिल मेरा पिघल गया 
और उसी में मिल गया। 
जिससे मैं मोहब्बत को
उस की तरस गया। 
और उस से मिलकर 
प्यार के सागर में डूब गया।। 

मोहब्बत एक नशा है
जो कम लोग पीते है। 
पर जो लोग पीते है
वो इसे बहुत समझते है। 
तभी तो अपनी जिंदगी
एक-दूसरे के नाम कर देते है। 
और मोहब्बत के लिए 
जीते और मरते है।। 

जमाना कुछ भी कहे
पर परवा नहीं करते। 
और एक दूसरे के प्रति 
सदा समर्पित रहते। 
न दिन देखते है और 
न ही रात देखते है। 
अपनी जिंदगी को
मोहब्बत का नाम देते है।। 

जरूरी नहीं है सभी की 
मोहब्बत परवान चड़े। 
पर जिसकी चड़ती है
उसे जन्नत लगती है। 
इसलिए मोहब्बत को
स्वर्ग जैसा मेहसूस करते है। 
और अपनी दुनियां में
दोनों जीते मरते है।। 

जय जिनेंद्र
संजय जैन "बीना" मुंबई
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