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अस्ताचलगामी सूर्य को दिया गया अर्घ्य

अस्ताचलगामी सूर्य को दिया गया अर्घ्य

पटना से दिव्य रश्मि संवाददाता  जितेन्द्र कुमार सिन्हा की खबर |
एक ऐसी पूजा जिसमें कोई पुजारी नहीं होता है और देवता प्रत्यक्ष रुप से दिखते हैं, वह पूजा है सूर्य पूजा यानि छठ पूजा।
इस पूजा में प्रत्यक्ष रुप से अस्ताचलगामी सूर्य को देखकर पूजा किया जाता है। यह पूजा जाति समुदाय से परे होते हैं और केवल लोक गीत गाते हैं। चार दिवसीय छठ पर्व में पूजा के लिए पकवान घर पर बनाये जाते हैं।
दुनियां कहती है कि जिसका उदय होता है उसका अस्त निश्चित है। लेकिन सूर्य की छठ महापर्व यह संदेश देता है कि जो डूबता है, उसका उदय भी निश्चित है।

छठ पर्व सामाजिक सौहार्द, सद्भाव, शांति, समृद्धि और सादगी के महापर्व है। प्राचीन हिन्दू वैदिक त्योहार विशेष रूप से बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल राज्यों के माघई लोगों, मैथिल और भोजपुरी लोगों द्वारा मनाया जाता है।

छठ पर्व के तीसरे दिन रविबार को डूबते सूर्य को पहला अर्घ्य व्रतधारी ने दिया।

विश्व प्रसिद्ध सूर्य देव की आराधना तथा संतान के सुखी जीवन की कामना के लिए समर्पित छठ पूजा आज सम्पन्न हो गया।

चार दिवसीय छठ पूजा 28 अक्टूबर को पहला दिन नहाय-खाय, 29 अक्टूबर को दूसरा दिन लोहंडा यानि खरना, 30 अक्टूबर को अस्तलगामी (सन्ध्या) अर्घ्य और 31 अक्टूबर को चौथा दिन सूर्योदय (सुबह) अर्घ्य, पारण के साथ सम्पन्न होगा।

सभी छठव्रती रविवार 30 अक्टूबर को अस्तलगामी अर्घ्य देने से पहले बांस की टोकरी को फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू और पूजा के सामग्रियो से सजाकर गंगा नदी, तलाब, पोखर इत्यादि जगहों पर जहां अर्ध्य देने की व्यवस्था की गई है वहाँ पहुंचकर अस्तलगामी अर्ध्य अर्पित किया।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सायंकाल में सूर्य अपनी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं. इसलिए छठ पूजा में शाम के समय सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती है।

ज्योतिषियों के अनुसार ढलते सूर्य को अर्घ्य देने से कई मुसीबतों से छुटकारा मिलती है और सेहत से जुड़ी भी कई समस्याएं दूर होती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण के मुताबिक ढलते सूर्य को अर्घ्य देने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।

पटना में अधिकांश लोग अपने- अपने घरों में छत पर भगवान भास्कर को अस्तलगामी अर्ध्य अर्पित किया।

जदयू के महिला प्रकोष्ठ की महासचिव रश्मि लता ने भी छठ व्रत की अस्तलगामी अर्घ्य अपने घर के छत पर दी। उन्होंने बताया कि स्वच्छता, श्रद्धा के साथ निश्चिंत भाव से अपने घर पर अर्घ्य देने पर आत्म संतुष्टि मिलती है।

अनीसाबाद के मित्रमंडल कॉलोनी की रहने वाली स्मृति राखी ने बताया कि बताया कि छत पर छठ व्रत करने से बूढ़े बुजुर्ग लोग भी शामिल होते है तो बहुत अच्छा लगता है, इसलिए मैं घर पर ही छठ व्रत करती हूं।

बिहार सरकार के कोषागार में काम करने वाली और साकेत विहार कॉलोनी में रहने वाली कृति सिन्हा ने बताया कि घर पर छठ व्रत करने से अगल बगल में रहने वाले जो गंगा जी या किसी तालाब पर नहीं जा सकते हैं वे लोग बहुत ही उत्साह के साथ शामिल होते हैं और छठ पूजा की पवित्रता में कोई त्रुटि न हो इसका भी ध्यान रखते हैं, इसलिए मैं घर पर ही छठ व्रत करती हूं।

छठ व्रत घर के छत पर हो या तालाव पर या गंगा जी के तट पर, लेकिन पवित्रता, श्रद्धा, लगन और निष्ठा में कोई कमी नहीं होता है और उत्साह के साथ किया जाता है।
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