मेरा मौन निमंत्रण
---:भारतका एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र"अणु"
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मैं आज भी-
खुश हो जाता हूं।
जब कभी-
तुम्हें देखता हूं।।
आज भी उठता है,
वही रंगढंग।
मन मचलता है-
पाने को संग।
ऐसा मुमकिन नहीं,
मैं जानता हूँ।
पर अब अपने मन को
बेमन मानता हूँ।।
खैर मैं तुम्हें देखकर
जी लूंगा।
तेरे जीवन के जहर को-
पी लूंगा।।
भले तुम-
आना न आना।
कभी मौका मिले तो-
मुझे आजमाना।।
वही हृदय,वही मन-
वही चाह,वही धडकन।
पहचानों तो जरा-
मेरा मौन निमंत्रण।।
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