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तमिलनाडु में रामायण कालीन अवशेष

तमिलनाडु में रामायण कालीन अवशेष

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
चोल वंश के राजाओं को लेकर बनी फिल्म पोन्नियन सेल्वन की चर्चा कई मायनों में की जा रही है। इस फिल्म में लम्बे अर्से के बाद ऐश्वर्याराय ने मुख्य भूमिका निभाई है। बाक्स आफिस पर इसका कलेक्शन भी अच्छा हुआ है। इसी के साथ चोलवंश के राजाओं के हिन्दुत्व पर भी सवाल उठाया गया हालांकि सवाल उठाने वाले स्वयं ही कहते हैं कि उस समय हिन्दू नहीं बल्कि शैव अर्थात शिव को मानने वाले और वैष्णव अर्थात् विष्णु के अनुयायी ही थे। शैव और वैष्णव हिन्दू ही थे, कोई मुसलमान और ईसाई नहीं। इसलिए यह विवाद तो व्यर्थ का है। ऐश्वर्या की फिल्म कल्कि कृष्णमूर्ति के उपन्यास पोन्नियन सेल्वन पर ही आधारित है, इसलिए उसके कथानक को लेकर भी बहस करना व्यर्थ है लेकिन दक्षिण भारत के इस महान राजवंश के बारे में मौजूदा पीढ़ी को जानकारी जरूर मिलनी चाहिए। एनसी ईआरटी के पाठ्यक्रम में इसीलिए चोलवंश का इतिहास पढ़ाया जा रहा है। तमिलनाडु में रामायण कालीन अवशेष है। चोलवंश का साम्राज्य भी श्रीलंका से कंबोडिया तक फैला हुआ था। यहीं पर तूतुकुडी नगर है जिसे अंग्रेजों ने तूती कोरिन नाम दे दिया। तूतीन शब्द का अर्थ दूत होता है। माना जाता है कि हनुमान जी श्रीराम के दूत बनाकर माता सीता की खोज में जब लंका जा रहे थे तब थोड़ी देर के लिए वह तूतुकुड़ी में रूके थे। हालांकि यह भी माना जाता है कि यह स्थान समुद्र से निकला है क्योंकि तूर्तु शब्द का मतलब समुद्र से पुनः प्राप्त की गयी भूमि होता है।

तमिलनाडु का तूतुकुड़ी नगर श्री मंदिर नगर के रूप में जाना जाता था। किंवदंती के अनुसार जब हनुमान सीता की खोज में लंका जा रहें थे तो रास्ते में थोड़ी देर के लिए वे तूतुकुंड़ी में रुके थे। कहते हैं कि इस शहर को यह नाम तूतीन शब्द से प्राप्त हुआ है जिसका अर्थ है दूत। माना जाता है कि यह नाम दो शब्दों को जोड़ने से बनता है, “तूर्तु” अर्थात् समुद्र से पुनः प्राप्त की हुई भूमि और “कुंड़ी” अर्थात् ‘वास’। प्राचीन काल से यह शहर बंदरगाह शहर के रूप में प्रसिद्ध है, पांडियन शासन काल के दौरान यह एक प्रसिद्ध बंदरगाह नगर के रूप में जाना जाता था। 1548 में, इस शहर को पुर्तगालियों ने पांड़ियनों से ले लिया। बाद में 1658 में इस शहर पर डच ने कब्जा कर लिया और 1825 में यह शहर अंग्रेजों के अधीन हो गया। 1866 में यह शहर एक नगर पालिका के रूप में स्थापित किया गया और रॉश विक्टोरिया इस शहर के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किए गए। बाद में 2008 में इसे एक निगम के रूप में स्थापित किया गया है।

तूतुकुड़ी शहर राज्य एवं देश के बाकी शहरों से अच्छी तरह जुड़ा है तथा यहां तक पहुंचना बहुत आसान है। इस शहर में एक हवाई अड्ड़ा भी है जो चेन्नई से जुड़ा हुआ है। शहर का रेलवे स्टेशन दक्षिण भारत के कई शहरों से जुड़ा हुआ है। तमिलनाडु के अन्य शहरों तथा नगरों से इस शहर के लिए नियमित रूप से बसों की सेवा उपलब्ध है। तूतुकुड़ी शहर उष्णकटिबंधीय मौसम का अनुभव कराता है और यहां गर्मियां बेहद गर्म होती है। यह गर्मियों में इस शहर की यात्रा को अत्यंत कठिन बनाता है। मानसून में यहां भारी वर्षा होती है जो पर्यटन के क्रियाकलापों में बाधाएं पैदा कर सकती हैं। इसलिए इस शहर की यात्रा करने के लिए वर्ष का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से लेकर मार्च के सर्द महीने हैं, जब तापमान सुखद और मधुर बना रहता है।

तमिलनाडु राज्य के दक्षिण पूर्वी तट पर स्थित, यह नगर निगम एक प्रसिद्ध बंदरगाह शहर भी है। यह शहर अपने मोतियों के लिए प्रसिद्ध है, इसलिए मोतियों के शहर के रुप में नामित है। यह शहर मछली पकड़ने के लिए और जहाजों के निर्माण के लिए भी प्रसिद्ध है। तूतुकुड़ी की उत्तरी और पश्चिमी दिशा में तिरुनेलवेली जिला स्थित है, और इसकी पूर्वी दिशा में रामनाथपुरम और विरुधुनगर स्थित हैं। तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई तूतुकुड़ी शहर से 600 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह शहर तिरुवनंतपुरम के भी काफी करीब है जो केवल 190 किमी की दूरी पर स्थित है।समुद्र तटों के प्रेमियों के लिए, तूतुकुड़ी एक आदर्श पर्यटन स्थल है। शहर के बंदरगाह सबसे महत्वपूर्ण और आकर्षक पर्यटन स्थलों में से एक है। यह शहर अपने उद्यान के लिए भी काफी लोकप्रिय है, उनमें से हार्बर (बंदरगाह) उद्यान, राजाजी उद्यान और रॉश उद्यान बहुत लोकप्रिय हैं। यह शहर तिरुचेंदूर मंदिर के लिए भी प्रसिद्ध है जो भगवान सुब्रमण्य को समर्पित है। यह शहर केंद्रीय समुद्री मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान (सी.एम.एफ.आर.आई) के लिए भी प्रसिद्ध है। अन्य आकर्षणों में मनपद कलुगुमलाई, ओट्टापिड़रम इट्टयापुरम, कोरकाई अतिचनल्लूर, वांची मनियाची और पंचलंकुरीची एवं नव तिरुपति शामिल हैं। चट्टान को काट कर बनाया गया प्रसिद्ध कलुगुमलाई जैन मंदिर तथा कोरकाई और वेट्रिवेलम्मन मंदिर भी प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षण हैं। ये स्थान प्रसिद्ध पिकनिक स्थल भी हैं। इन के साथ यहां कट्टभोम्मन स्मारक किला नामक एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल भी है, जो स्वतंत्रता सेनानी वीरपांड़ियन कट्टभोम्मन को समर्पित है जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ चल रहे स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था।

कृष्णा तथा तुंगभद्रा नदियों से लेकर कुमारी अन्तरीप तक का विस्तृत भूभाग प्राचीन काल में तमिल प्रदेश का निर्माण करता था। इस प्रदेश में तीन प्रमुख राज्य थे-चोल, चेर तथा पाण्ड्य। अति-प्राचीनकाल में इन तीनों राज्यों का अस्तित्व रहा है।

सम्राट अशोक के तेरहवें शिलालेख में इन तीनों राज्यों का स्वतन्त्र रूप से उल्लेख किया गया है जो उसके साम्राज्य के सुदूर दक्षिण में स्थित थे। कालान्तर में चोलों ने अपने लिये एक विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया। उनके उत्कर्ष का केन्द्र तंजौर था और यही चोल साम्राज्य की राजधानी थी। चोल राजवंश का इतिहास जानने के लिए अनेक साहित्यिक पुस्तकों का उपयोग करते हैं । इनमें सर्वप्रथम संगम साहित्य (100-250 ई॰) का उल्लेख किया जा सकता है। उसके अध्ययन से प्रारम्भिक चोल शासक करिकाल की उपलब्धियों का ज्ञान प्राप्त करते हैं। पाण्ड्य तथा चेर राजाओं के साथ उसके सम्बन्धों का भी ज्ञान होता है। जयंगोण्डार के कलिंगत्तूपराणि से कुलोतुंग प्रथम की वंश-परम्परा तथा उसके समय में कलिंग पर किये जाने वाले आक्रमण का परिचय मिलता है। ओट्टक्कुट्टम् की विक्रमचोल, कुलीतुंग द्वितीय तथा राजराज द्वितीय के सम्बन्ध में रची गयी उलायें (श्रृंगार प्रधान जीवन-चरित) उनके विषय में कुछ ऐतिहासिक बातें बताती हैं। शेक्किलार द्वारा रचित ‘पेरियपुराणम्’, जो कुलोत्तुंग द्वितीय के काल में लिखा गया था, के अध्ययन से तत्कालीन धार्मिक दशा का ज्ञान प्राप्त होता है। बुधमित्र के व्याकरण ग्रन्थ ‘वीरशोलियम्’ से वीरराजेन्द्र के समय की कुछ ऐतिहासिक घटनाओं का ज्ञान मिलता है। बौद्धग्रन्थ महावंश से परान्तक की पाण्ड्य विजय तथा राजेन्द्र प्रथम की लंका विजय का विवरण ज्ञात होता है। संगम युग (लगभग 100-250 ई॰) में चोलवशी नरेश दक्षिण में शक्तिशाली थे । इस काल के राजाओं में करिकाल (लगभग 190 ई॰) का नाम सर्वाधिक उल्लेखनीय है । संगम साहित्य में उसकी उपलब्धियों का विवरण मिलता है।
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