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वो एक लड़का

वो एक लड़का

लेखक मनोज मिश्र इंडियन बैंक के अधिकारी है|

कपडे मैले, उदास 
हाथ पैर गंदे शायद 
महीनो नहीं नहाये हुए 
बेचता गुटका 
ट्रेन के डब्बे के अन्दर 
आने जाने वाले 
यात्रियों से निस्पृह 
लगाता आवाज 
बेचता गुटका 
क्या हुआ गर 
सरकार की है बंदिश 
बचपन शायद 
कुछ जानता  हुआ 
चाहता नहीं बेचना 
पर बेचता गुटका 
खेलने को शायद 
उसका भी मन करता 
दुसरे बच्चों की तरह 
पर है विवश 
माँ बाप भाई बहन 
यक्ष प्रश्न है खड़े कई 
अतः बेचता गुटका 
आँखे खोजती ग्राहक 
जैसे हिंस्र जंतु की 
आँखों में शिकार 
बनता अनजान टीटी से 
बचता घूमता 
रेल पुलिस जवान से 
पर बेचता गुटका 
पूछा मैंने एकबार 
क्यूँ सिर्फ गुटका 
नशा है यह 
बनाता लोगों को 
लती बेकार 
बोला-नहीं जानता 
वह यह सब 
उसके लिए है 
यह सिर्फ व्यापार 
दो पैसा कमाएगा 
तो पायेगा आहार 
सिर्फ वही नहीं 
उसका पूरा परिवार 
इससे किसे क्या होता 
उसका नहीं सरोकार 
इस काम के लिए 
है एक सरकार 
कहते हुए बढ़ता 
बेचने को गुटका 
वह एक लड़का 
पेट की आग में 
होम होता बचपन 
इस देश में है 
नहीं नया 
वक्त से पहले 
जवान होने का सबक 
यहाँ जिंदगी ने पढ़ा 
ताकि जिंदगी चल सके
और भी कई  
कैसे कहूँ हैं जिंदगी में 
दर्द और भी कई 
फलसफे के सिवा 

~~ मनोज कुमार मिश्र
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