आतंकी
जाने कितने रोज जहन्नुम, कितने दोजख जाते हैं,
जो आतंक का खेल खेलते, मिट्टी में मिल जाते हैं।
जिसकी खातिर मरने निकले, अपनी हस्ती खत्म करी,
बात तुम्हारी लाशों की जब, पहचान से भी कतराते हैं।
गुमनामी में मर जाते हो, अंग भंग हो सड जाते हो,
कहाँ लिखा इस्लाम में बोलो, आतंकी जन्नत जाते हैं?
अगर गये तुम सब जन्नत में वहाँ भी खून खराबा होगा,
जन्नत को भी चन्द कमीने, दोजख करना चाहते हैं।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag
0 टिप्पणियाँ
दिव्य रश्मि की खबरों को प्राप्त करने के लिए हमारे खबरों को लाइक ओर पोर्टल को सब्सक्राइब करना ना भूले| दिव्य रश्मि समाचार यूट्यूब पर हमारे चैनल Divya Rashmi News को लाईक करें |
खबरों के लिए एवं जुड़ने के लिए सम्पर्क करें contact@divyarashmi.com