Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

छठ - लोकआस्था का महापर्व

छठ - लोकआस्था का महापर्व:-मनोज मिश्र

लोकआस्था के महापर्व छठ का समापन आज प्रातः के अर्ध्य के साथ हो गया। छठ के घाट पर नए नए परिधानों और पारंपरिक स्वर्णाभूषणों से अलंकृत छठ व्रतियों को देखकर हृदय आनंदित हो जाता है। एक और बात जो छठ घाटों पर परिलक्षित होती है वह है भारतीय परिधानों यथा साड़ी धोती कुर्ता, पजामा कुर्ता बंडी आदि की प्रधानता। युवा लड़कियां भी अपने को सलवार कमीज, पंजाबी सूट ओढ़नी से सज्ज करती हैं। नन्हे बालक शरद ऋतु के आगमन की झलक देते हुए रंग बिरंगी टोपियां लगाए नज़र आते हैं। पूरे आयोजन में ग्रामीण सादगी और भारतीय परिवेश की झलक मिलती है। कहीं कोई उद्दंडता नहीं, कोई दबाव नहीं, सब ओर छठ गीतों की मधुर स्वर लहरी आप भारत को अगर जानना चाहते हैं तो इस लोकआस्था के पर्व का हिस्सा बनिये। आइये अब इस पर्व के कुछ धार्मिक पक्ष को भी जानें-
ये हम सभी जानते हैं कि छठ महापर्व में सूर्य देव की आराधना की जाती है, लेकिन, सोचने वाली बात यह है कि ये गीत छठी मैय्या के क्यों बजाए जाते हैं या फिर हम "छठ मैया" किसे कहते हैं ?
पुराण हमारे भारतीय के इतिहास को लिपिबद्ध करते हैं और हमारे प्रश्नों का उत्तर पौराणिक कथाओं में ही मिलता है। छठ से संबंधित जानकारी, इसका उद्गम इत्यादि भी हमें एक पौराणिक कथा में मिलता है..!
छठ पूजा की शुरुआत और सूर्योपासना के आरम्भ के बारे में पौराणिक कथाओं में बताया गया है।


हमारे धर्मग्रंथों कहते हैं कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम, द्वापर में दानवीर कर्ण और पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी। परंतु इन वर्णनों में छठी मैय्या को उद्धृत नहीं किया गया है। छठी मैया की पूजा से जुड़ी एक क​था राजा प्रियवंद की है जिन्होंने, सबसे पहले छठी मैया की पूजा की थी।
यह कथा बताती है कि सतयुग में राजा प्रियवंद ने ही सबसे पहले अपने पुत्र की प्राणरक्षा हेतु छठ पूजा की थी।
कथा यूँ है कि प्रियवंद नि:संतान थे और उनका हृदय इससे बड़ा व्यथित रहता था कि उनके बाद उनके राज्य की बागडोर कौन संभालेगा और ऊर्जा के समुचित रक्षण हेतु जिस प्रकार के व्यक्ति की आवश्यता होगी उसे वे कहां से लाएंगे। अगर उनके पुत्र होता तो उसे वह बचपन से अपने आदर्शों और सिद्धांतों में पंगा कर उसका मार्गदर्शन कर सकते थे। उन्हें इसकी बड़ी पीड़ा थी।अंततः उन्होंने महर्षि कश्यप के आश्रम की ओर अपने कदम बढ़ा दिए जो उस समय के सर्वश्रेष्ठ ऋषि थे। उनकी व्यथा सुनकर ऋषि ने उन्हें सांत्वना दी और उन्हें पुत्रेष्टि यज्ञ करने का मंतव्य दिया।
इसी यज्ञ में आहुति के लिए बनाई गई खीर राजा प्रियवंद की पत्नी मालिनी को खाने के लिए दी गई। यज्ञ के समाप्ति के बाद और खीर प्रसाद के सेवन से समयोपरान्त मालिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया। परंतु राजा प्रियवंद के दुर्भाग्य से वह मृत पैदा हुआ। इससे शोकाकुल होकर राजा प्रियवंद मृत पुत्र के शव को लेकर श्मशान पहुंचे और पुत्र वियोग में अपने भी प्राण त्यागने लगे।
उसी समय ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं। उन्होंने राजा प्रियवंद को दिलासा देते हुए कहा कि मैं सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हूं इसलिए, मेरा नाम षष्ठी भी है।
तुम मेरी पूजा करो तो, तुम्हारा पुत्र जीवित हो उठेगा। देवी षष्ठी के कहे अनुसार राजा प्रियवंद ने पुत्र की कामना से माता का व्रत पूरे विधि विधान से किया। व्रत के दिन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी थी। इसके फलस्वरुप राजा प्रियवंद के पुत्र को जीवनदान प्राप्त हुआ।


हम उन्हीं भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना उर्फ षष्ठी को ही षष्ठी मैया अर्थात छठी मैया के नाम से जानते हैं।


कालांतर में त्रेता युग में लंका के राजा रावण का वध कर अयोध्या आने के पश्चात भगवान श्रीराम और माता सीता ने रामराज्य की स्थापना के लिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को उपवास रखा था और सूर्य देव की पूजा अर्चना की थी।
इसी प्रकार... द्वापर युग में भी द्रौपदी ने पांच पांडवों के बेहतर स्वास्थ्य और सुखी जीवन लिए छठ व्रत रखा था और सूर्य की उपासना की थी, जिसके परिणामस्वरुप पांडवों को उनको खोया राजपाट वापस मिल गया था।
आस्था के अलावा हम सामाजिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण की बात करें तो पाते हैं कि छठ पूजा में नए फसलों को सूप में लेकर उसे सूर्य देवता को अर्ध्य दिया जाता है यानी उन्हें अर्पित किया जाता है।
ये अर्ध्य पहले डूबते हुए सूर्य को और दुबारा उगते हुए सूर्य को दिया जाता है।
ये, अर्ध्य एक प्रकार से सूर्य देव को धन्यवाद ज्ञापन है कि आपकी कृपा से हमें धन-धान्य की प्राप्ति हो रही है इसीलिए, इसे पहले हम आपको समर्पित करते हैं।
इसके अलावा. पहला अर्ध्य डूबते सूर्य को देना हमारे सनातन हिन्दू संस्कार को परिलक्षित करता है। छठ पूजा के माध्यम से हम दुनिया को ये संदेश देते हैं कि डूबते सूर्य अर्थात बुजुर्ग का हमारे परिवारों में बहुत सम्मान होना चाहिए और उन्हें अपने जीवन मे उचित मान सम्मान मिलते रहना चाहिए ताकि वे हमारे उचित मार्गदर्शन हमेशा करते रहें।
पुनः अगली प्रात हम उगते सूर्य को अर्ध्य देकर अपनी अगली पीढ़ी के लिए भी अपनी भावना को प्रदर्शित करते हैं।
यही हमारे सनातन हिन्दू धर्म की ख़ूबसूरती है कि हम प्रकृति के साथ साथ अपनी पूर्व एवं आगामी पीढ़ी का भी सम्मान करते हैं और हमारा ये छठ महापर्व उस आस्था और सम्मान का जीवंत उदाहरण है। आने वाले समय में इस प्रकृति को मान देने वाले अपने जल संसाधनों के रक्षण का संदेश देने वाले महापर्व का विस्तार होता रहेगा। आज यह पर्व पूरी दुनिया मे मनाया जा रहा है जो इसके सर्वहितकारी और सर्वमंगलकारी होने का स्वतः जीवंत प्रमाण बन गया है।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ