अमृत बरसाने वाली रात
(मोहिता स्वामी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
यह रात बहुत प्यारी लगती है। रात भर चांदनी बिखरी रहती है। भारत कृषि प्रधान देश है और यहां की प्रमुख फसलें रबी की मानी जाती हैं। गेहूं, जौ, चना, मटर, अरहर, उरद, मूंगफली, गन्ना जैसी फसलें उगाई जाती हैं। इनके लिए खेत को अच्छी तरह जोता जाता है। शरद पूर्णिमा को रात भर हल चलाकर किसान अपने खेत को नमी युक्त बना लेते हैं और यही उनके लिए अमृत है। प्रकृति की जो घटना सामूहिक कल्याण करती हो, उसको नमन करना, पूजा करना भी मानवता की निशानी है। शरद पूर्णिमा इसीलिए पूज्य है।
रात-दिन, अंधेरा-उजाला जैसे शब्द हमारी प्रकृति के अंग हैं लेकिन सुविधा-असुविधा की दृष्टि से हमने इनको भी अच्छे और बुरे की श्रेणी में डाल दिया। इस प्रकार रात बुराई का प्रतीक बन गयी लेकिन उसी प्रकृति ने एक ऐसी रात भी बना दी जो अमृत की बारिश करती है। इस रात को शरद पूर्णिमा की रात कहते हैं। पौराणिक कथानकों के अनुसार इस रात को ब्रज के रसिया नंदलाला ने रास किया था। इस रात को चंद्रमा से अमृत की बूंदें टपकती हैं और बताते हैं रावण ने शरद पूर्णिमा की रातों में चांदनी में स्नान कर अपनी नाभि में अमृत एकत्रित कर लिया था। बहरहाल, इस तरह की कितनी ही कहानियां हैं लेकिन यह रात बहुत प्यारी लगती है। रात भर चांदनी बिखरी रहती है। भारत कृषि प्रधान देश है और यहां की प्रमुख फसलें रबी की मानी जाती हैं। गेहूं, जौ, चना, मटर, अरहर, उरद, मूंगफली, गन्ना जैसी फसलें उगाई जाती हैं। इनके लिए खेत को अच्छी तरह जोता जाता है। शरद पूर्णिमा को रात भर हल चलाकर किसान अपने खेत को नमी युक्त बना लेते हैं और यही उनके लिए अमृत है। प्रकृति की जो घटना सामूहिक कल्याण करती हो, उसको नमन करना, पूजा करना भी मानवता की निशानी है। शरद पूर्णिमा इसीलिए पूज्य है।
आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा आदि नामों से जाना जाता है। साल में 12 पूर्णिमा में यह पूर्णिमा सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। इस पूर्णिमा में चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से युक्त होता है। इसके अलावा इसी पूर्णिमा पर भगवान कृष्ण ने ब्रज मंडल में गोपियों के साथ रासलीला की थी। इस साल शरद पूर्णिमा 9 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस पर्व का काफी महत्व है। इस दिन चंद्रमा की रोशनी में रखी खीर का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए और अन्य को भी वितरित करना चाहिए। ज्योतिष की मान्यता है कि पूरे वर्ष में केवल इसी दिन चंद्रमा 16 कलाओं का होता है। इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना नदी के तट पर मुरली वादन करते हुए गोपियों के साथ रास रचाया था। शरद पूर्णिमा को लेकर कुछ कथाएं भी हैं। एक कथा इस प्रकार है-
एक साहूकार के दो पुत्रियां थीं और दोनों ही पूर्णमासी का व्रत रखती थीं, लेकिन बड़ी वाली पूरे विधि-विधान को मानती थी, जबकि छोटी अधूरा व्रत ही करती थी। दोनों का विवाह हो गया और वे अपने घर चली गईं। बड़ी के कई संतानें हुईं, किंतु छोटी की संतानें जन्म लेते ही मर जाती थीं। छोटी ने तमाम विद्वान पंडितों को बुलाकर कारण जानना चाहा तब पंडितों ने उन्हें अधूरे पूर्णिमा व्रत की बात बताई। अब छोटी ने पूरे विधि-विधान से पूर्णमासी का व्रत किया तो कुछ समय के बाद फिर उसे पुत्र की प्राप्ति हुई, किंतु वह भी शीघ्र ही मर गया। इस पर उसने एक पाटे पर उसे लिटाकर कपड़ा ओढ़ा दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर बैठने के लिए वही पाटा दिया, बड़ी बैठने ही जा रही थी कि उसका घाघरा पाटे से छुआ और बच्चा रोने लगा। इस पर बड़ी ने क्रोधित होकर कहा कि तू मेरे ऊपर कलंक लगाना चाहती थी, मेरे बैठने से यह बच्चा मर जाता, तब छोटी ने पूरी बात बताई कि तेरे पुण्य और भाग्य से ही वह जी उठा है। इसके बाद से ही शरद पूर्णिमा का व्रत रखकर पूजा की जाती है।
मान्यता है कि इस दिन प्रातः काल स्नान करके आराध्य देव को सुंदर वस्त्रों, आभूषणों से सुशोभित कर आसन, आचमन, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से पूजन करना चाहिए। गौ दूध से बनी खीर में घी तथा चीनी मिलाकर रख देना चाहिए और अर्धरात्रि को रसोई समेत भगवान का भोग लगाना चाहिए। रात्रि जागरण करके भगवद भजन करते हुए चांद की रोशनी में ही सुई में धागा पिरोना चाहिए। पूर्ण चंद्रमा की चांदनी के मध्य खीर से भरी थाली को रख देना चाहिए और दूसरे दिन उसका प्रसाद सबको देना चाहिए। रात्रि में ही कथा सुननी चाहिए और इसके लिए एक लोटे में जल रखकर पत्ते के दोने में गेहूं और रोली अक्षत रखकर कलश का पूजन कर दक्षिणा चढ़ाएं। गेहूं के 14 दानें हाथ में लेकर कथा सुनें और लोटे के जल से रात में चंद्रमा को अर्घ्य दें। जो लोग विवाह होने के बाद पूर्णिमा के व्रत का नियम शुरू करते हैं, उन्हें शरद पूर्णिमा के दिन से ही व्रत का प्रारंभ करना चाहिए।
इस व्रत को आश्विन पूर्णिमा, कोजगारी पूर्णिमा और कौमुदी व्रत नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। कहते हैं कि इस दिन मां महालक्ष्मी का जन्म हुआ। मान्यता के अनुसार, शरद पूर्णिमा पर मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरुड़ पर सवार होकर पृथ्वी लोक पर भ्रमण के लिए आती हैं। इस दिन मां लक्ष्मी घर-घर जाकर भक्तों पर कृपा बरसाती हैं। इस दिन प्रकृति मां लक्ष्मी का स्वागत करती हैं। कहते हैं कि इस रात को देखने देवतागण भी स्वर्ग से पृथ्वी पर आते हैं। शरद पूर्णिमा पर मां महालक्ष्मी की विधिवत पूजा की जाती है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी अमृत समान होती है। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी में बैठने से शारीरिक रोगों से मुक्ति मिलती है। श्वांस संबंधी बीमारी दूर होती है। शरद पूर्णिमा की रात्रि में चंद्र दर्शन करने से नेत्र संबंधी रोग दूर हो जाते हैं। इस रात्रि खीर का भोग लगाकर आसमान के नीचे रखी जाती है। मां लक्ष्मी का पूजन करने के बाद चंद्र दर्शन किया जाता है। शरद पूर्णिमा को कुमार पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस रात्रि में जागरण करने और मां लक्ष्मी की उपासना से धन-धान्य की प्राप्ति होती है। मां लक्ष्मी की पूजा के दौरान उन्हें गुलाबी रंग के फूल और इत्र, सुंगध अर्पित करें। श्री विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ, कनकधारा स्त्रोत का पाठ करें। इस दिन माता लक्ष्मी के साथ चंद्रदेव की विशेष पूजा की जाती है। मां लक्ष्मी को सफेद मिठाई अर्पित करें। शाम को श्रीराधा-कृष्ण की पूजा करें। उन्हें गुलाब के फूलों की माला अर्पित करें। मध्य रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य दें। शरद पूर्णिमा पर सात्विक भोजन करें। शरद पूर्णिमा की रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में राधा और गोपियों के साथ महारास रचाया था। इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
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