रावण अभी जिन्दा हैं
ऋचा श्रावणी
महाप्रतापी, महाज्ञानी महान था वह राजा
श्री लंका भी है अमर उसकी गाथा
ऋषि विश्रवा का पुत्र, ब्राह्मण श्रेष्ठ
रावण जिसका नाम था जिसके मस्तक पर था तेज़
तीनों लोक में उसके जैसा कोई वीर नहीं
दस विद्याओं पर थी पकड़ उसके जैसी किसी की नहीं
शिव का वह परम भक्त जिसने शिव तांडव श्रोत रचाया
आज तक इस धरा पर महादेव को कोई प्रसन्न ना कर पाया
आविष्कार किया पुष्पक विमान का
वर्तमान में भी ऐसा यान कहां
भूल सिर्फ उससे इतनी हुई की
वह सीता माता हरण किया
पति रूप में मुझे स्वीकार करो
ऐसा उन्होंने उनसे आग्रह किया
काम, क्रोध वासना और अहंकार था उसमें समाया
अपने इस शत्रु को वह मार ना पाया
अंत में श्री राम को आना पड़ा
स्वर्ण की लंका जली वंश का संहार हुआ
रावण के इन अवगुणों ने त्रेता युग कांप उठा
कलयुग में तो यह सारे अवगुण हर व्यक्ति में समा चुका
लंका पति के गुण को कोई ना समझा
नताओ ने विकार अपनाया
रक्षक भक्षक बन बैठा हैं
फिर किस अधिकार से विजयदशमी को
तीर प्रत्यंचा पर चढ़ाते हो
तुम्हारे भीतर का रावण तो अभी जिन्दा है
और रावण का पुतला जलाते हो
ना वेद का ज्ञान, ना कोई रचना
ना कोई आविष्कार और ना कोई विज्ञान
स्वयं तो अज्ञानी हो सत्कर्म का पाठ पढ़ाते हो
दुष्कर्म तो गिरेबान में भरे है भाषण अच्छा सुनाते हो
पहले मर्यादा पुरषोत्तम तो बनो फिर रावण को मार गिराओ
रावण भी प्रसन्न होगा ऐसा तुम पुरुषार्थ जगाओ।
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