धनवन्तरिजयन्ति, धनत्रयोदशी (धनतेरस) ::कुछ संदेश, कुछ निर्देश:-कमलेश पुण्यार्क
प्रिय बन्धुओं !
कार्तिककृष्ण द्वादशी, तदुपरान्त त्रयोदशी तिथि इस बार 22 अक्टूबर 2022, शनिवार है। इस दिन को लोग धनतेरस के रूप में मनाते हैं।
बहुत लोगों ने बहुत कुछ खरीदने की योजना बनायी होगी। आपकी योजनाओं पर पानी फेरना मेरा उद्देश्य नहीं हैं, किन्तु अनजाने में या देखादेखी कुछ खरीद डालने की मानसिकता के प्रति आगाह कर देना, मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ।
धनतेरस को "कुछ" खरीद कर घर लाना चाहिए— यह पूरा सच नहीं है, बल्कि आधा सच है। पूरा सच यह है कि आप खरीद क्या रहें हैं— इस पर निर्भर है— लक्ष्मी का आगमन या निर्गमन। सच्चाई ये है कि इस पवित्र और महान दिन को यदि कुछ खरीदना ही है तो कुछ खास चीजें ही खरीदनी चाहिए, न कि कुछ भी। रत्नों में हीरा, पन्ना, माणिक, पोखराज, मोती आदि ही खरीदें। नीलम, गोमेद लहसुनियाँ न लें। धातुओं में सोना, चाँदी, तांबा, पीतल, कांसा— बस इतना ही, इससे नीचे न आयें।
आजकल लोग स्टील, हंडालियम और फाईवर के युग में इसे भी खरीद कर धनतेरस मना लेते हैं। कार, मोटरसायकिल, वासिंगमशीन, टीवी, कम्प्यूटर, मोबाइल आदि भी खरीदने का खूब चलन है। ये सब राहु और शनि की वस्तुयें हैं।
सीधे कहें तो— सूर्य, चन्द्रमा, बुध, गुरु, शुक्र की वस्तुयें ही खरीदें। राहु, शनि, मंगल की वस्तुओं से परहेज करें। उन्हें आवश्यकतानुसार कभी बाद में खरीदें, धनतेरस से गोधन (भैयादूज) तक कदापि नहीं।
थोड़ा और गहराई से इस बात को समझना चाहें तो कह सकता हूँ कि जन्मकुण्डली के अनुसार विचार भी कर लिया जाय, तो अति उत्तम। कहीं आप द्वितीयेश, सप्तमेश, षष्ठेश, अष्ठमेश, द्वादशेश आदि मारकेश ग्रहों की वस्तुयें तो नहीं खरीद रहे हैं— इस बात का ज्ञान और ध्यान रखना आवश्यक है। अन्यथा सम्पत्ति के भ्रम में आप विपत्ति को आमन्त्रित कर रहे होते हैं।
सामान्य नियमानुसार सूर्य, चन्द्रमा, बुध, गुरु, शुक्र का जो समर्थन किया गया है, यदि संयोग से वे आपके लिए प्रतिकूल हैं, तो प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ सकता है । किन्तु इसका ये अर्थ भी नहीं कि शनि-राहु अनुकूल हैं तो उनकी वस्तुएं खरीद लें इस दिन। अतः इस ज्योतीषीय विचार के लिए किसी विशेषज्ञ की राय ले लेना उचित होगा।
अब जरा इस पर्व के दूसरे पहलु की ओर ध्यान दें— वाजारवादी व्यवस्था ने पिछले कुछ दशकों से हमें सिखला दिया है कि धनतेरस धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी का दिन है, किन्तु सत्य ये है कि धनतेरस का धन से तो सम्बन्ध है, परन्तु लक्ष्मी से सीधे कोई सम्बन्ध नहीं है। अर्थप्रधान युग में हम ये भूल बैठे हैं कि सबसे बड़ा धन हमारा स्वस्थ शरीर है, जिसकी रक्षा करना हमारा कर्त्तव्य है। हमें सदा सचेष्ट रहने की आवश्यकता है कि हम बीमार न हों। बीमारियों से हमारी रक्षा हो, इसके लिए आवश्यक है कि समुद्रमन्थन क्रम में अमृतकलश सहित उद्भुत भगवान धनवन्तरि की हम उपासना करें,क्योंकि स्वास्थ्य-रक्षक भगवान धनवन्तरि की जयन्ति है ये । अतः इसे धनवन्तरि-पूजा के रूप में मनाना चाहिए।
ध्यातव्य है इसी दिन रात्रि में यम के निमित्त दीप दान करके, मृत्यु के देवता यम को भी प्रसन्न करने की परम्परा है। लोकरीति में कहीं-कहीं लोग अगले दिन चतुर्दशी तिथि को मनाते हैं, जबकि वो पितरों के निमित्त दीपदान (दीपश्राद्ध) का दिन है और तब अन्तिम दिन अमावस्या को लक्ष्मी की उपासना अर्थात् दीपावली मनानी चाहिए। अस्तु।
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