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कभी कभी अपने कातिल को, दोस्त बताना पड़ता है,


कभी कभी अपने कातिल को, दोस्त बताना पड़ता है,

जंगल के हिंसक शेरों को, ख़रगोश बताना पड़ता है।
देखो कितनी मजबूरी, सत्ता के जोड़ तोड़ का खेल,
रामभक्तों के कातिल को, रामभक्त बताना पड़ता है।
जो मोह माया में लिप्त रहे, बस ख़ानदान की ख़ातिर,
मुस्लिम तुष्टिकरण किया, धरती पुत्र बताना पड़ता है।
जो भारत माँ को डायन कहते, मंत्रीमंडल सहयोगी थे,
जातिवाद में गले तक डूबे, धर्मनिरपेक्ष बताना पड़ता है।
लड़कों से गलती हो जाती, जो बलात्कार पर कहते थे,
ऐसे हमदर्दों को, बेटियों का रक्षक बताना पड़ता है।
गुण्डागर्दी जिनके राज में, सत्ता की पहचान बनी,
दंगे करवाने वालों को क़ानून का, पालक बताना पड़ता है।
माया को भी जिसने अपने, दाँवपेंच में उलझाया था,
माया में ही लिप्त रहे, भोगी को जोगी बताना पड़ता है।

अ कीर्ति वर्द्धन
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