गोपाष्टमी का पावन पर्व
गोपाष्टमी का पावन पर्व धूमधाम से मनाया जाता,
द्वापर-युग से चला आ रहा यह बात सब जानता।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को आता,
इस रोज़ पूजन और प्रार्थना की जाती है गौमाता।।
इस गाय को हमारी संस्कृति में पवित्र माना जाता,
जिसकी वजह से ऋषियों ने इसे अपनें संग रखा।
समुन्द्र मंथन में निकली थी यह कामधेनु गौ माता,
इस बात का वर्णन हमनें श्रीमद्भागवत में है देखा।।
वें भगवान श्रीकृष्ण भी करतें थे गौमाता की सेवा,
जिससे उनको मिलता था माखन मिश्री एवं मेवा।
ग्वाले बनकर के जातें थे वो उनको खेतों में चराने,
सखाओ के साथ कर लेते गिरधर गोपाल कलेवा।।
इस दिन प्रातः काल गायों को स्नान कराया जाता,
तत्पश्चात आकर्षक श्रृंगारकर उन्हें सजाया जाता।
गंध पुष्पों से पूजन करके भोजन इन्हें दिया जाता,
ग्वालों को उपहार भेटकर सम्मानित किया जाता।।
अंत में गौमाता की चरणरज सिर पे लगाया जाता,
ऐसा करनें से सौभाग्य में वृद्धि कार्य सफल होता।
दूध दही घी का सेवन कर इन्सान मालामाल होता,
हर लेते हरि कष्ट एवं पीड़ा जो सेवा इनकी करता।।
रचनाकार गणपत लाल उदय, अजमेर राजस्थान
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