चलें हम सब ठीक अपने पाँव
दूरवीनी दृष्टि से दिखता रहे अपना ठिकाना,
संचयन के साथ उद्यम बने परिलक्षित निशाना।
मध्य पथ में आ सके मत कभी भी भटकाव।
आत्म निर्भरता रहे हरदम हमारा लक्ष्य ,
हम बना पाएँ न कोई बुद्धिहीन विपक्ष।
भले आँधी राह रोके हो न पदठहराँव।
खुले मन से सकारात्मक पौध का रोपण
सफलता के विग्रहों को मिले संगोपन।
परस्पर संवाद मेंं हो लुप्त सभी दुराव।
पड़ोसी की प्रकृति में जब दुष्टता झलके
और अपनी आँख मेंजल बूँद सा छलके
नीतियों में तुरत करना है हमें बदलाव।
रामकृष्ण/गयाजी
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