गंगा स्नान
गंगा स्नान
पाप -पुण्य नहीं,
आस्था का प्रश्न है |
देखा है मैंने
हजारों गरीबों को,
फटे हाल कपडे
भूखा पेट,
बूढ़ा भी चलता
लाठी को टेक |
मन में लगन
स्नान की धुन
भगवान में उसकी
आस्था सघन |
सर पे थी पोटली
पाँव था चोटल
शरीर थक गया था पर
मन में उमंग थी |
कार्तिक का महिना
सर्दी घनी थी
गंगा का पानी
बर्फ सी जमी थी |
हर-हर गंगे एक मंत्र ने
उसका उत्साह बढा डाला
बर्फ से ठन्डे पानी को
शीतल जल बना डाला |
कर स्नान हुआ वह धन्य
ईश्वर का आभार किया
पाप -पुण्य नहीं विचारा
गंगा का आभार किया |
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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