मधुर मुस्कान
--:भारत का एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र अणु
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ओ भ्रमर
जो गुजर चुके
अपने अंतिम बसंत
वे अब भी
उतावले है
नवल कलियों के
मृदूमुख चूमने को
जब की कलियां
नहीं देखना चाहती
उसी आते अपनी गालियां
फिर भी वह
चला अता है खींचे
घुमाने उसकी रासिक्त डालियां
कलियां चाहती है नव भ्रमर
जो तृप्त कर सके अधर
बचकर नजर
ठहर ठहर
पर वो बूढ़ा भ्रमर
गड़ाए रहता है नजर
कि कब कौन आ रहा है
इन कलियों के नव डगर
हे भगवान
रखना ध्यान
कही छीन न ले कोई
इन नाजुक कलियों की
कोई मधुर मुस्कान
----------------------------------------वलीदाद,अरवल(बिहार)
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