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विवाद से बचते हुए नागरिकता

विवाद से बचते हुए नागरिकता

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)

हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं के साथ बहुत ज्यादा अत्याचार हो रहा है। आश्चर्य यह कि वहां की असहिष्णुता पर हमारे देश के भी कथित बुद्धिजीवी हंगामा नहीं करते। हिन्दू अल्पसंख्यकों के साथ दुव्र्यवहार पड़ोसी देश बांग्लादेश और अफगानिस्तान में भी होता है और कितने ही लोग वहां से भागकर भारत में आ गये लेकिन उनको भारत की नागरिकता नहीं मिल पायी। नरेन्द्र मोदी की सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में संशोधित नागरिकता कानून का प्रारूप पेश किया था। इसको लेकर जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए। दिल्ली में तो महत्वपूर्ण रास्ते को ही जाम करते हुए शाहीन बाग में महीनों धरना दिया गया। इसके पीछे राजनीति ज्यादा थी क्योंकि हिन्दुस्तान में पड़ोस के देशों से परेशान होकर आए हिन्दुओं को नागरिकता नहीं मिलेगी तो कहां मिलेगी? बहरहाल, मोदी सरकार का नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 विवादों में घिर गया है लेकिन शरणार्थियों की समस्या को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। इसलिए मोदी सरकार ने गत 31 अक्टूबर को भारत के नागरिकता कानून 1955 के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले और वर्तमान में गुजरात के दो जिलों में रह रहे हिन्दुओं, सिखों, बौद्ध, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने का फैसला किया है। कुछ लोग इसको भी राजनीति के चश्मे से देखेंगे क्योंकि गुजरात में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं लेकिन केन्द्र सरकार के इस कदम को इंसानियत के चश्मे से देखना चाहिए। पड़ोसी देशों से परेशान होकर जो स्त्री-पुरुष और बच्चे भारत में आए हैं, उनकी उम्मीदों को जीवित रखने की जरूरत है।

मोदी सरकार ने सोमवार को अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले और वर्तमान में गुजरात के दो जिलों में रह रहे हिंदुओं, सिखों, बौद्ध, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को नागरिकता कानून, 1955 के तहत भारतीय नागरिकता देने का फैसला किया है। विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 (सीएए) के बजाय नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत नागरिकता देने का यह कदम महत्वपूर्ण है। इससे मूल समस्या सुलझ जाएगी।

सीएए अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं, सिखों, बौद्ध, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को भारतीय नागरिकता देने का भी प्रावधान करता है. चूंकि अधिनियम के तहत नियम अब तक सरकार द्वारा नहीं बनाए गए हैं, इसलिए इसके तहत अब तक किसी को भी नागरिकता नहीं दी सकी है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की एक अधिसूचना के अनुसार, गुजरात के आणंद और मेहसाणा जिलों में रहने वाले हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को धारा 5, नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6 के तहत और नागरिकता नियम, 2009 के प्रावधानों के अनुसार भारत के नागरिक के रूप में पंजीकरण की अनुमति दी जाएगी या उन्हें देश के नागरिक का प्रमाण पत्र दिया जाएगा.

देश में घुसपैठियों का मामला काफी समय से चर्चा का विषय है। घुसपैठियों को देश से बाहर करने की दिशा में सबसे पहले असम में एनआरसी यानी नैशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस पर काम हुआ लेकिन एनआरसी को लेकर यह विवाद हुआ कि बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को भी नागरिकता की लिस्ट से बाहर रखा गया है जो देश के असल निवासी हैं। ऐसे लोगों के समाधान के लिए सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून, 2019 बनाया है जिसको लेकर देश भर में विरोध हुआ।

नागरिकता संशोधन कानून 2019 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और क्रिस्चन धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बनाया गया है। पहले किसी व्यक्ति को भारत की नागरिकता हासिल करने के लिए कम से कम पिछले 11 साल से यहां रहना अनिवार्य था। इस नियम को आसान बनाकर नागरिकता हासिल करने की अवधि को एक साल से लेकर 6 साल किया गया है यानी इन तीनों देशों के ऊपर उल्लिखित छह धर्मों के बीते एक से छह सालों में भारत आकर बसे लोगों को नागरिकता मिल सकेगी। आसान शब्दों में कहा जाए तो भारत के तीन मुस्लिम बहुसंख्यक पड़ोसी देशों से आए गैर मुस्लिम प्रवासियों को नागरिकता देने के नियम को आसान बनाया गया है। नागरिकता कानून, 1955 के मुताबिक अवैध प्रवासियों को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकती है। इस कानून के तहत उन लोगों को अवैध प्रवासी माना गया है जो भारत में वैध यात्रा दस्तावेज जैसे पासपोर्ट और वीजा के बगैर घुस आए हों या फिर वैध दस्तावेज के साथ तो भारत में आए हों लेकिन उसमें उल्लिखित अवधि से ज्यादा समय तक यहां रुक जाएं।अवैध प्रवासियों को या तो जेल में रखा जा सकता है या फिर विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत वापस उनके देश भेजा जा सकता है। केंद्र सरकार ने साल 2015 और 2016 में उपरोक्त 1946 और 1920 के कानूनों में संशोधन करके अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई को छूट दे दी है। इसका मतलब यह हुआ कि इन धर्मों से संबंध रखने वाले लोग अगर भारत में वैध दस्तावेजों के बगैर भी रहते हैं तो उनको न तो जेल में डाला जा सकता है और न उनको निर्वासित किया जा सकता है। यह छूट उपरोक्त धार्मिक समूह के उनलोगों को प्राप्त है जो 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत पहुंचे हैं। इन्हीं धार्मिक समूहों से संबंध रखने वाले लोगों को भारत की नागरिकता का पात्र बनाने के लिए नागरिकता कानून, 1955 में संशोधन के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक, 2016 संसद में पेश किया गया था। इस विधेयक को 19 जुलाई, 2016 को लोकसभा में पेश किया गया था और 12 अगस्त, 2016 को इसे संयुक्त संसदीय कमिटी के पास भेजा गया था। कमिटी ने 7 जनवरी, 2019 को अपनी रिपोर्ट सौंपी। उसके बाद अगले दिन यानी 8 जनवरी, 2019 को विधेयक को लोकसभा में पास किया गया।

उस समय राज्य सभा में यह विधेयक पेश नहीं हो पाया था। अगर कोई विधेयक राज्य सभा में लंबित हो और लोकसभा से पास नहीं हो पाता और लोकसभा भंग हो जाती है तो वह विधेयक निष्प्रभावी नहीं होता है। चूंकि यह विधेयक राज्यसभा से पास नहीं हो पाया था और इसी बीच 16वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त हो गया, इसलिए इस विधेयक को फिर से दोनों सदन में पास कराना पड़ा। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद यह कानून बन गया। विपक्ष का सबसे बड़ा विरोध यह है कि इसमें खासतौर पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया गया है। उनका तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो समानता के अधिकार की बात करता है। पाकिस्तान मानवाधिकार के मुताबिक, अकेले 2021 में देशभर में ईशनिंदा के आरोप में 585 लोगों की गिरफ्तारी हुई। पाकिस्तान एक इस्लामिक मुल्क है, यही कारण है कि वहाँ अल्पसंख्यकों सफाया किया जा रहा है। अगर पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की संख्या देखी जाए तो इसमें पिछले कुछ दशकों में अत्यंत तेजी से गिरावट आयी है। इसके कारण हैं हिन्दू-सिखों का अवैध और जबरन धर्मांतरण और उनकी हत्याएं, जिनका कोई हिसाब ही नहीं है। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। सिंध प्रांत में 8 साल की हिंदू लड़की कविता भील के साथ क्रूरता का मामला सामने आया था। यह घटना दिसंबर 2021 में हुई थी, लेकिन पाकिस्तानी प्रशासन और मीडिया ने इसे दबा दिया था। युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद मजहबी राक्षसों ने उसकी आंखें भी छीन लीं।
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