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सौगन्ध मुझे है इस मिट्टी की

सौगन्ध मुझे है इस मिट्टी की

सौगन्ध मुझे है इस मिट्टी-की कुछ ऐसा कर जाऊॅंगा।
अपनें वतन की सुरक्षा में दुश्मनों को धूल-चटाऊॅंगा,
नक्सली हों चाहें घुसपैठी इन सबको मार गिराऊॅंगा।
ऑंधी आऍं चाहें तूफ़ान आऍं मैं चलता हीं जाऊॅंगा।।


साहस और ज़ुनून के बल शिखर चूमकर दिखाऊॅंगा,
ख्वाहिशें ना अधूरी रखूॅंगा उन्हें पूरी करता जाऊॅंगा
दुश्मन को ख़ाक में मिलाकर ऐसे पहचान बनाऊॅंगा।
हर तरह की विपत्तियों से मुकाबला करता जाऊॅंगा।।


धरती-माॅं का तिलक लगाकर शत्रु से लड़नें जाऊॅंगा,
असफल का कोई काॅलम नहीं जीतकर दिखाऊॅंगा।
एक-एक बूंद ख़ून की बहाकर तिरंगा में फहराऊॅंगा‌,
वक्त मिला तो शहीद सैनानियों का क़र्ज़ चुकाऊॅंगा।।


देना पड़ा तो वतन के खातिर जान अपनी लुटा दूॅंगा,
लेकिन दुश्मनों को मॅंसूबे में कामयाब ना होने दूॅंगा।
कर दूॅंगा सब के सिर कलम लाशें उनकी बिछा दूॅंगा,
दागे चाहें बम्ब-ग्रेनेट मैं भी जलवा उन्हें दिखा दूॅंगा।।


इस बहादुरी का में भी अब पर्याय बनके दिखाऊॅंगा,
घुस जाऊॅंगा चक्रव्यूह में चाहें लौटकर ना आऊॅंगा।
कविता कहानी मुक्तक दोहे इन पर लिखते जाऊॅंगा,
देशभक्ति व शहादत की ख़ुशबू विश्व में फैलाऊॅंगा।।


रचनाकार गणपत लाल उदय, अजमेर राजस्थान
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