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अपमान

अपमान

क्यों करता अपमान किसी का, तूने कभी यह सोचा है।
दुख दर्द भी होता होगा, क्या ऐसा सोच कर देखा है।


सब कुछ नश्वर है जगत में, क्षणभंगुर संसार है।
क्यों घमंड में घूम रहे हो, क्या यही तुम्हारा प्यार है।


सब जीवो का स्वरूप है अपना, सबकी अपनी रेखा है।
क्यों करता अपमान किसी का, ये सोचकर तुमने देखा है।


जात पात की खाई को, तुमने ही तो बोया है।
अपने स्वार्थ सिद्धि के हेतु, मगरमच्छीआंसू रोया है।


प्रेम वहां पर टिक नहीं पाता,रिश्ते यहीं से खोता है।
क्यों करता अपमान किसी का, क्या सोच कर देखा है।


सर्वगुण संपन्न नहीं कोई,कुछ तो अवगुण होता है।
कोई सूक्ष्म बुद्धि के होते, किसी के पकड़ कम होता है।


इन बातों से उपहास उड़ाना,कहां तक शोभा देता है।
क्यों करता अपमान किसी का, तूने कभी यह सोचा है।


जो ज्ञानी खुद को समझते, यह परिभाषा उनकी नहीं।
जलील और प्रताड़ित करना, यह तो उनकी भाषा नहीं।


विनय शीलता शिक्षा से मिलती, यह तो हमने देखा है।
क्यों करता अपमान किसी का, तूने कभी यह सोचा है।
डॉ. इन्दु कुमारी मधेपुरा बिहार
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