देश की एकता और अखंडता के संदर्भ में सरदार वल्लभभाई पटेल हमारे लिए सदा अनुकरणीय वंदनीय रहेंगे : डॉ राकेश कुमार आर्य
महरौनी (ललितपुर)। महर्षि दयानंद सरस्वती योग संस्थान आर्य समाज महरौनी के तत्वावधान में विगत 2 वर्षों से वैदिक धर्म के मर्म को युवा पीढ़ी को परिचित कराने के उद्देश्य से प्रतिदिन मंत्री शिक्षक आर्य रत्न लखनलाल आर्य द्वारा आयोजित आर्यों के महाकुंभ में दिनांक 31 अक्टूबर को राष्ट्रीय एकता दिवस के अवसर पर सरदार वल्लभ भाई पटेल को स्मरण करते हुए कहा कि उनकी अद्भुत कार्य क्षमता, नेतृत्व शक्ति ,राष्ट्रभक्ति और कठोर निर्णय लेने की प्रबल इच्छाशक्ति के कारण भारत की एकता और अखंडता को हम बनाए रखने में सफल हुए।
सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ आर्य ने कहा कि 28 सितंबर 1947 को जब मुस्लिम लीग के सदस्य नजीरूद्दीन अहमद के नेतृत्व में संविधान सभा में मुस्लिमों के लिए विधान मंडलों में अपनी आबादी के आधार पर आरक्षण की मांग कर रहे थे तो सरदार पटेल ने खड़े होकर गरजते हुए कहा था कि-”भारत का नया राष्ट्र किसी भी प्रकार की विध्वंसात्मक प्रवृत्तियों को सहन नहीं करेगा। यदि फिर वही मार्ग अपनाया जाता है, जिसके कारण देश का विभाजन हुआ तो जो लोग पुन: विभाजन करना चाहते हैं और फूट के बीज बोना चाहते हैं उनके लिए यहां कोई स्थान नहीं होगा, कोई कोना नहीं होगा।….किन्तु मैं अब देखता हूं कि उन्हीं युक्तियों को फिर अपनाया जा रहा है, जो उस समय अपनायी गयी थीं जब देश में पृथक निर्वाचन मण्डलों की पद्घति लागू की गयी थी। मुस्लिम लीग के वक्ताओं की वाणी में प्रचुर मिठास होने पर भी अपनाये गये उपाय में विष की भरपूर मात्रा है।
सबसे बाद के वक्ता (श्री नजीरूद्दीन अहमद) ने कहा है कि ”यदि हम छोटे भाई का संशोधन स्वीकार नहीं करेंगे तो हम उसके प्यार को गंवा देंगे।"
अध्यक्ष महोदय मैं उस (छोटे भाई) का प्यार गंवा देने को तैयार हूं। अन्यथा बड़े भाई की मृत्यु हो सकती है। आपको अपनी प्रवृत्ति में परिवर्तन करना चाहिए। स्वयं को बदली हुई परिस्थितियों के अनुकूल ढालना चाहिए। वह बहाना बनाने से काम नहीं चलेगा कि-”हमारा तो आपसे घना प्यार है।” हमने आपका प्यार देख लिया है अब इसकी चर्चा छोडिय़े। आइए , हम वास्तविकताओं का सामना करें। प्रश्न यह है कि आप वास्तव में हमसे सहयोग करना चाहते हैं या तोड़ फोड़ की चालें चलना चाहते हैं। मैं आपसे हृदय परिवर्तन का अनुरोध करता हूं। कोरी बातों से काम नहीं चलेगा, उससे कोई लाभ नहीं होगा। आप अपनी प्रवृत्ति पर फिर से विचार करें। यदि आप सोचते हैं कि उससे आपको लाभ होगा तो आप भूल कर रहे हैं-मेरा आपसे अनुरोध है कि बीती को बिसार दें, आगे की सुध लें। आपको मनचाही वस्तु (पाकिस्तान) मिल गयी है। और स्मरण रखिये आप ही लोग पाकिस्तान के लिए उत्तरदायी हैं पाकिस्तान के वासी नहीं। आप लोग आन्दोलन के अगुआ थे। अब आप क्या चाहते हैं? हम नही चाहते कि देश का पुन: विभाजन हो।”
डॉक्टर आर्य ने कहा कि सरदार पटेल शेख अब्दुल्ला को कतई मुंह नही लगाते थे, क्योंकि वह ऐसा व्यक्ति था जो नीचे से ऊपर तक भारत के प्रति विष से भरा हुआ था। इसलिए शेख की हर गतिविधि पर पटेल बड़ी पैनी दृष्टि रखते थे। शेख भी सरदार पटेल के सामने घबराता था और कितने ही अवसरों पर पटेल के सामने उसकी बोलती बंद हो गयी थी। ‘सरदार पटेल : कश्मीर एवं हैदराबाद’ के लेखक द्वय पी.एन. चोपड़ा एवं प्रभा चोपड़ा लिखते हैं कि सरदार पटेल की चेतावनी थोड़े शब्दों में ही होती थी, किंतु वे अपनी बात समझाने में काफी प्रभावकारी होते थे। कश्मीर पर वाद विवाद के समय शेख अब्दुल्ला क्रोधित होकर एक बार संसद से बाहर चले गये। सरदार पटेल ने अपनी सीट से बैठे-बैठे ही उधर देखा। उन्होंने सदन के एक वयोवृद्घ व्यक्ति को बुलाकर कहा-‘(शेख को बता दो कि) शेख संसद से तो बाहर जा सकते हैं, किंतु दिल्ली से बाहर नही जा सकते।’ इस चेतावनी ने शेख को भीतर तक हिला दिया था, और वह तुरंत अपनी सीट पर आकर बैठ गये।
उन्होंने कहा कि जब जम्मू-कश्मीर को बचाने के लिए दिल्ली में एक खास मीटिंग हो रही थी तो नेहरू और तत्कालीन सेनाध्यक्ष भी निराशाजनक बातें कर रहे थे परंतु सरदार पटेल ने अपना विचार व्यक्त किया-‘‘जनरल ! हर कीमत पर कश्मीर की रक्षा करनी होगी। आगे जो होगा देखा जाएगा। संसाधन हैं या नही, आपको यह तुरंत करना चाहिए। सरकार आपकी हर प्रकार की सहायता करेगी। यह अवश्य होना है और होना ही चाहिए। कैसे और किसी भी प्रकार करो, किंतु इसे करो।’’
डॉक्टर आर्य ने कहा कि हमें सरदार वल्लभ भाई पटेल के व्यक्तित्व और कृतित्व से शिक्षा लेकर राष्ट्र की रक्षा के लिए समर्पित होना चाहिए। उन्होंने कहा कि उस समय त्रावणकोर, भोपाल, जूनागढ़, जोधपुर, जम्मू कश्मीर और हैदराबाद ऐसी रियासतें थी जिन्हें सरदार वल्लभ भाई पटेल के सक्षम नेतृत्व के कारण ही हम भारत में मिला पाए थे। इनमें से जम्मू कश्मीर की रियासत उनसे शेष बची थी जो हमारे लिए आज तक सिरदर्द बनी हुई है।
कार्यक्रम में अन्य विद्वानों में अन्तर्राष्ट्रीय वैदिक प्रवक्ता आचार्य आनन्द पुरुषार्थी,प्रो. डॉ. व्यास नन्दन शास्त्री वैदिक बिहार, प्रो.डा. वेंद प्रकाश शर्मा बरेली, अनिल कुमार नरूला दिल्ली, प्रधान प्रेम सचदेवा दिल्ली, डॉ. कपिल देव शर्मा दिल्ली, आर्या चन्द्रकान्ता " क्रांति हरियाणा, युद्धवीर सिंह हरियाणा, भोगी प्रसाद म्यांमार,चन्द्रशेखर शर्मा जयपुर देवी सिंह आर्य दुबई, अनुपमा सिंह शिक्षिका, सुमनलता सेन आर्या शिक्षिका, आराधना सिंह शिक्षिका, अवधेश प्रताप सिंह बैंस,परमानंद सोनी भोपाल, अवध बिहारी तिवारी शिक्षक, सहित सम्पूर्ण विश्व से आर्यजन सम्मिलित थे ।संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य एवं आभार मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ ने जताया। श्री लखन लाल आर्य द्वारा इस अवसर पर भारत के जम्मू कश्मीर के पाक अधिकृत भाग के क्षेत्र के सांसदों की कुर्सियों की व्यवस्था देश की संसद के निचले सदन में उसी प्रकार कराए जाने की मांग की गई जिस प्रकार जम्मू कश्मीर की विधानसभा में 24 सीटें पाक अधिकृत कश्मीर के क्षेत्र के लिए खाली पड़ी रहने की व्यवस्था रही है। श्री आर्य के इस प्रस्ताव का सभी आर्यजनों ने करतल ध्वनि से स्वागत किया।
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