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कार्तिक पूर्णिमा पर देवता मनाते दीपावली

कार्तिक पूर्णिमा पर देवता मनाते दीपावली

(पं. आर.एस. द्विवेदी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कही जाती है। इस दिन देवता दीपावली मनाते हैं। इसी दिन महादेवजी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था। इसलिए इसे ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ भी कहते हैं। इस दिन यदि कृतिका नक्षत्र हो तो यह ‘महाकार्तिकी’ होती है, भरणी नक्षत्र होने पर विशेष फल देती है और रोहिणी नक्षत्र होने पर इसका महत्त्व बहुत अधिक बढ़ जाता है। इसी दिन संध्या समय भगवान का मत्स्यावतार हुआ था। इस दिन गंगा स्नान के बाद दीप-दान आदि का फल दस यज्ञों के समान होता है। इस दिन गंगा-स्नान, दीपदान, अन्य दानों आदि का विशेष महत्त्व है। ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने इसे ‘महापुनीत पर्व’ कहा है। इसलिए इसमें गंगा स्नान, दीपदान, होम, यज्ञ तथा उपासना आदि का विशेष महत्त्व है। इस दिन कृतिका पर चंद्रमा और विशाखा पर सूर्य हो तो ‘पद्मक योग’ होता है जो पुष्कर में भी दुर्लभ है। इस दिन कृतिका पर चंद्रमा और बृहस्पति हो तो यह ‘महापूर्णिमा’ कहलाती है। इस दिन संध्याकाल में त्रिपुरोत्सव करके दीपदान करने से पुनर्जन्मादि कष्ट नहीं होता। इस तिथि में कृतिका में विश्व स्वामी का दर्शन करने से ब्राह्मण सात जन्म तक वेदपाठी और धनवान होता है।

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार त्रिपुर राक्षस ने एक लाख वर्ष तक प्रयागराज में घोर तप किया। इस तप के प्रभाव से समस्त जड़-चेतन, जीव तथा देवता भयभीत हो गए। देवताओं ने तप भंग करने के लिए अप्सराएं भेजीं, पर उन्हें सफलता न मिल सकी। आखिर ब्रह्मा जी स्वयं उसके सामने प्रस्तुत हुए और वर मांगने को कहा। त्रिपुर ने वर मांगा, ‘न देवताओं के हाथों मरूं, न मनुष्य के हाथों।’ इस वरदान के बल पर त्रिपुर निडर होकर अत्याचार करने लगा। इतना ही नहीं, उसने कैलाश पर्वत पर भी चढ़ाई कर दी। परिणामतः महादेव तथा त्रिपुर में घमासान युद्ध छिड़ गया। अंत में शिव जी ने ब्रह्मा तथा विष्णु की सहायता से उसका संहार कर दिया।

इस दिन क्षीरसागर दान का अनंत माहात्म्य है। क्षीरसागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोडकर किया जाता है। यह उत्सव दीपावली की भांति दीप जलाकर सायंकाल में मनाया जाता है। इस दिन चंद्रोदय पर शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छह कृतिकाओं का अवश्य पूजन करना चाहिए। कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि में व्रत करके वृष (बैल) दान करने से शिव पद प्राप्त होता है। गाय, हाथी, घोड़ा, रथ, घी आदि का दान करने से संपत्ति बढ़ती है। इस दिन उपवास करके भगवान का स्मरण, चिंतन करने से अग्निष्टोम यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है तथा सूर्यलोक की प्राप्ति होती है। इस दिन मेष (भेड़) दान करने से ग्रहयोग के कष्टों का नाश होता है। इस दिन कन्यादान से ‘संतान व्रत’ पूर्ण होता है। कार्तिक पूर्णिमा से प्रारंभ करके प्रत्येक पूर्णिमा को रात्रि में व्रत और जागरण करने से सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं। इस दिन कार्तिक के व्रत धारण करने वालों को ब्राह्मण भोजन, हवन तथा दीपक जलाने का भी विधान है। इस दिन यमुना जी पर कार्तिक स्नान की समाप्ति करके राधा-कृष्ण का पूजन, दीपदान, शय्यादि का दान तथा ब्राह्मण भोजन कराया जाता है। कार्तिक की पूर्णिमा वर्ष की पवित्र पूर्णमासियों में से एक है।

अगर आप मानसिक कष्टों से मुक्ति पाना चाहते हैं तो पूर्णिमा का व्रत अवश्य करें। पूर्णिमा व्रत करने से पारिवारिक कलह और अशांति दूर हो जाती है। जिन व्यक्तियों की कुंडली में चंद्र ग्रह पीड़ित और दूषित है और इस ग्रह की वजह से जीवन में बहुत समस्याएं आ रही हैं उन्हें पूर्णिमा व्रत अवश्य करना चाहिए। पूर्णिमा के दिन शिवलिंग पर शहद, कच्चा दूध, बेलपत्र, शमी पत्र अर्पित करने से भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और सभी प्रकार की बीमारियों से भी मुक्ति मिलती है। जो लोग अकारण डरते हैं या मानसिक चिंता से ग्रसित रहते हैं उन्हें पूर्णमासी व्रत अवश्य करना चाहिए। लंबा और प्रेम भरा वैवाहिक जीवन व्यतीत करने के लिए भी पूर्णिमा व्रत करना बहुत शुभ माना जाता है।

पूर्णिमा संस्कृत का शब्द है। पूर्णिमा का दिन प्रत्येक मास में एक बार होता है। पूर्णिमा प्रत्येक मास में दो चंद्र नक्षत्रों (पक्ष) के बीच के विभाजन को चिह्नित करती है, और चंद्रमा एक सीधी रेखा में सूर्य और पृथ्वी के साथ संरेखित होता है। पूर्णिमा को चंद्रमा के चार प्राथमिक चरणों में से तीसरा माना जाता है। अन्य तीन चरण हैं अमावस्या, पहली तिमाही चंद्रमा और तीसरी तिमाही चंद्रमा। पूर्णिमा 100 फीसदी प्रकाश दिखाती है। उच्च ज्वार का कारण बनती है और चंद्र ग्रहण के साथ मिल सकती है। चैत्र की पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। चैत्र की पूर्णिमा के दिन प्रेम पूर्णिमा पति व्रत मनाया जाता है। वैशाख की पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती मनाई जाती है। ज्येष्ठ की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री मनाया जाता है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। इसी दिन कबीर जयंती मनाई जाती है। श्रावण की पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है। भाद्रपद की पूर्णिमा के दिन उमा माहेश्वर व्रत मनाया जाता है। आश्विन की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। कार्तिक की पूर्णिमा के दिन पुष्कर मेला और भीष्म पंचक का अंतिम दिन होता है। मार्गशीर्ष की पूर्णिमा के दिन श्री दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है। पौष की पूर्णिमा के दिन शाकंभरी जयंती मनाई जाती है। जैन धर्म के मानने वाले पुष्यभिषेक यात्रा प्रारंभ करते हैं। बनारस में दशाश्वमेध तथा प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर स्नान को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। माघ की पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती, श्री ललित और श्री भैरव जयंती मनाई जाती है। माघी पूर्णिमा के दिन संगम पर माघ-मेले में जाने और स्नान करने का विशेष महत्व है। फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होली का पर्व मनाया जाता है। पूर्णिमा के दिन यदि व्रत किया जाए तो व्यक्ति को सात्विक रहना होता है। इस दिन अंडे या मांस आदि का भक्षण नहीं करना चाहिए। कई लोग तो प्याज और लहसुन का प्रयोग भी नहीं करते हैं। प्रेम भरा वैवाहिक जीवन व्यतीत करने के लिए पूर्णिमा का व्रत अवश्य करें। पूर्णिमा पर सत्यनारायण व्रत कथा का भी विशेष महत्व माना जाता है।
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