अनिद्रा का मँडराता वैश्विक संकट
अतिनिद्रा तो भागा बहुत दूर ,
अनिद्रा का संकट है मँडराया ।
मानव हुए काम धंधे से वंचित ,
विज्ञान महिमा चहुँ ओर छाया ।।
वैज्ञानिक सुविधाएँअनेकानेक ,
शारीरिक श्रम सब हो गए बंद ।
बैठे सोए समय सब है बीतता ,
मानव हुए हर काम से स्वछंद ।।
श्रम नहीं तो भोजन कम जाए ,
श्रम बिन थकावट भी न आती ।
हो सवार अनिद्रा का ही संकट ,
विज्ञान की महिमा बड़ी ख्याति ।।
श्रम गया और संग थकान गया ,
भोजन भी हुआ सबका अल्प ।
दीर्घायु जीवन का भी हुआ अंत ,
नहीं रहा आज कोई भी विकल्प।।
जमकर पहले शारीरिक श्रम था ,
जमकर होता शारीरिक थकान ।
जमकर उठता था कोई भोजन ,
एक नींद में हो जाता था विहान।।
रह नहीं गया आज श्रम कहीं भी ,
चिकित्सक सलाह करो भ्रमण ।
वी पी शुगर हार्ट सबको है छाया ,
करते रहो अस्पताल परिक्रमण ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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