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बदल नहीं पाये

बदल नहीं पाये

बहुत लिखी बहुत सुनी
हमने कथा और कहानियाँ।
जिसने सच में बदल दी
हमारी छोटी सी जिंदगी।
बहुत कुछ करना और
कराना अभी बाकी है।
और अपने समाज को
बिखरने से बचाना है।।


बहुत दुख होता है जब
अपने ही अपनों को ठगते।
और अपने होने का प्रमाण
इसी तरह से वो देते है।
जब जब पड़ी उनकी
जरूरत जीवन में।
तब तब उन्होंने हमें
कोई न कोई घाव दिये।।


मानवता का पाठ पढ़ा था
इसलिए उस पर अमल किया।
खुद से ज्यादा हमने
अपनों पर भरोसा किया।
पर उन्होंने तो हमेशा ही
आदतानुसर विश्वासघात किया।
और फिर भी अपने होने का
हमे सही आभास करा दिया।।


भावनाओं में बहना हमसब की
बहुत बड़ी कमजोरी है।
इसलिए हर कोई हमें
भावनाओं के चलते फसाते है।
चाहे वो अपने हो या पराये
पर सब एकसा ही करते है।
और अपना स्वभाव वो
कभी भी नहीं बदलते है।।


जय जिनेंद्रसंजय जैन "बीना" मुंबई
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