ब्राम्हण जागृत कर स्वाभिमान
बुद्धि- विवेक से वेद- पुराण का रखता अद्भुत ज्ञान।
बोलो पग-पग फिर भी क्यों तू झेल रहा अपमान।
ब्राह्मण जागृत कर स्वाभिमान।।
पूर्वजों की राह न चलकर,
मिटा रहा पहचान।
ना घर के ना घाट के रहा
क्यों है बना नादान।
ब्राह्मण जागृत कर स्वाभिमान।।
पीढ़ियों से ऋद्धि-सिद्धि का
रखकर भी तू ज्ञान।
अपना कल्याण हेतु
तूने क्यों न दिया कभी ध्यान।
ब्राह्मण जागृत कर स्वाभिमान।।
अब भी गर तू चूक गया तो,
होगा बड़ा नुकसान।
तुम भविष्य की ओर निहारो,
बात "विवेक" की मान।
ब्राह्मण जागृत कर स्वाभिमान।।
ध्येयनिष्ठ, सत्य-धर्म निष्ठ,
हो मानवता का प्राण।
तेरे लिए धरा पर आए,
कई बार भगवान।
ब्राह्मण जागृत कर स्वाभिमान।।
डॉक्टर विवेकानंद मिश्रडॉक्टर विवेकानंद पथ गोल बगीचा, गया (बिहार)
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