जागरूकता से भी रुक सकता है मधुमेह
(रमेश सर्राफ धमोरा-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
मधुमेह रोग आज के समय की सबसे विकट समस्या हैं। इसने पूरी दुनियां में अपना आतंक फैला रखा हैं। मधुमेह पर नियंत्रण तो किया जा सकता है पर इसे जड़ से खत्म नहीं किया जा सकता। मधुमेह को अगर नियंत्रित न किया जाये तो इसका असर किडनी, आंख, हृदय तथा ब्लड प्रेशर पर पड़ता हैं। मधुमेह की बीमारी में शरीर में ब्लड शुगर या ब्लड ग्लुकोज की मात्रा बढ़ जाती है। ऐसा तब होता है जब शरीर में होरमोन इन्सुलिन की कमी हो जाती है या वो इन्सुलिन हमारे शरीर के साथ सही ताल मेल नहीं बैठा पाते हैं। मधुमेह के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से ही अंतरराष्ट्रीय मधुमेह दिवस की शुरुआत की गई। 1991 वह साल था जब विश्व में सभी का ध्यान इस बीमारी के बढ़ते प्रकोप पर गया। लोगों को इसके संबंध में जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 14 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय मधुमेह दिवस मनाने की घोषणा की गयी थी। दुनिया के अधिकतर देशों में 14 नवम्बर को प्रतिवर्ष विश्व मधुमेह दिवस मनाया जाता है।
मधुमेह रोग के कारण एवं इसके विभिन्न पहलुओं को समझने हेतु कई लोग प्रयासरत थे। इनमें से एक जोड़ी फ्रेडरिक बैटिंग एवं चार्ल्स बेस्ट की भी थी जो पैनक्रियाज ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित तत्त्व के रसायनिक संरचना की खोज में लगे हुए थे। इस तत्त्व को अलग कर उन्होंने अक्टूबर 1921 में प्रदर्शित किया कि यह तत्त्व शरीर में ग्लूकोज का निस्तारण करने में अहम भूमिका निभाता है और इसकी कमी होने से मधुमेह रोग हो जाता है। इस तत्त्व को इंसुलिन का नाम दिया गया। इसकी खोज मधुमेह के इतिहास में एक मील का पत्थर है। इस कार्य हेतु उन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
14 नवम्बर को फ्रेडरिक बैटिंग का जन्म दिवस है। अतः विश्व मधुमेह दिवस हेतु इस तिथि का चयन किया गया। फ्रेडरिक बेटिंग के योगदान को याद रखने के लिए इंटरनेशनल डायबेटिक फेडरेशन द्वारा 14 नवम्बर को दुनिया के 140 देशों में मधुमेह दिवस मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय मधुमेह संघ के सतत प्रयास के फलस्वरूप संयुक्त राष्ट्र संघ ने अन्ततः मधुमेह की चुनौती को स्वीकारा और दिसम्बर 2006 में इसे अपने स्वास्थ कायक्रमों की सूची में शामिल किया। सन् 2007 से अब यह संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रम के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की सूची में शामिल होने का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि अब संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य देश अपनी स्वास्थ्य सम्बंधी नीति-निर्धारण में इसे महत्त्व दे रहें हैं।
2007 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा इस दिवस को अंगीकार करने के बाद इस का प्रतीक चिह्न नीला छल्ला चुना गया है। छल्ला या वृत्त निरंतरता का प्रतीक है। वृत्त इस बात का प्रतीक है विश्व के सभी लोग इस पर काबू पाने के लिये एकजुट हों। नीला रंग आकाश, सहयोग और व्यापकता का प्रतीक है। इस प्रतीक चिह्न के साथ मधुमेह के लिए एकजुटता सूत्र वाक्य दिया गया है।
भारत को मधुमेह की राजधानी कहा जाता है। खानपान की खराबी और शारीरिक श्रम की कमी के कारण पिछले दशक में मधुमेह होने की दर दुनिया के हर देश में बढ़ी है। भारत में इसका सबसे विकृत स्वरूप उभरा है जो बहुत भयावह है। जीवनशैली में अनियमितता मधुमेह का बड़ा कारण है। एक दशक पहले भारत में मधुमेह होने की औसत उम्र चालीस साल की थी जो अब घट कर 25 से 30 साल हो चुकी है। 15 साल के बाद ही बड़ी संख्या में लोगों को मधुमेह का रोग होने लगा है। कम उम्र में इस बीमारी के होने का सीधा मतलब है कि चालीस की उम्र आते-आते भारत में 1995 में मधुमेह रोगियों की संख्या 1 करोड़ 90 लाख थी जो 2008 में बढकर चार करोड़ हो गई। अनुमान है कि 2030 में मधुमेह रोगियों की संख्या आठ करोड़ के आसपास हो जाएगी।
इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन (आईडीएफ) और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने विश्व मधुमेह दिवस के मौके पर बताया है कि दुनियाभर में औसतन 40 लाख मधुमेह मरीजों की मौत हर साल होती है। हालांकि वर्ष 2021 में कोरोना महामारी के दौर में 67 लाख मधुमेह रोगियों की मौत हुयी थी जिसने अब तक के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। एक अध्ययन में यह निष्कर्ष निकलकर सामने आया है कि महिलाओं की तुलना में पुरुषों को मधुमेह की आशंका अधिक होती है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मधुमेह रोग इसी दर से बढ़ता रहा, तो आने वाले समय में भारत मधुमेह की दृष्टि से चीन को पीछे छोडकर दुनिया की राजधानी बन जाएगा। समय रहते नहीं चेते तो स्थिति भयावह होगी।
डॉक्टरों के अनुसार पांच में से दो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान रक्त में शुगर का स्तर बढने से पीड़ित होती हैं। अगर गर्भावस्था के दौरान डायबिटीज को नियंत्रित नहीं किया गया तो पैदा होने वाले शिशु साइज में बड़े और वजन 3.5 किलो से अधिक होता है। उनमें मधुमेह, हृदय रोग का खतरा दस गुना बढ़ जाता है। इसी वजह से मधुमेह महामारी बनती जा रही है। बदलती जीवन शैली और ठोस, उच्च ऊर्जा युक्त भोजन की प्रचुरता के कारण बच्चों में मोटापे की प्रवृत्ति इधर बहुत तेजी से बढ़ रही है। भारत में किये गये एक सर्वेक्षण में 13 से 18 वर्ष के बच्चो में 18 प्रतिशत में मोटापा पाया गया। बच्चों में बढ़ते मोटापे की प्रवृत्ति एवं शारीरिक श्रम में कमी के कारण अब मधुमेह से पीड़ित बच्चे भी बड़ी संख्या में देखने को मिल रहें हैं।
भारत में मधुमेह रोग पर गौर करें तो इसके अधिकतर केस शहरी क्षेत्र से ही आते हैं। गांवों में इसके रोगियों की संख्या बेहद कम रही हैं जो अब बेहताशा रूप से बढ़ रही हैं। इस रोग के प्रभावों पर गौर करे तो आने वाले समय में यह भारत की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्या का रूप ले सकती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी रेडियो कार्यक्रम मन की बात में कहा था कि कभी विलासितापूर्ण जीवन जीने वालों को होने की वजह से राज-रोग कहलाने वाला मधुमेह आज जीवन शैली से जुड़ी बीमारी बन चुका है जिससे बचाव के लिए लोगों को अपनी दिनचर्या में योग एवं व्यायाम को शामिल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि पहले जो बीमारिया बड़ी उम्र में जीवन के अंतिम पड़ाव के आस-पास होती थीं। वह आजकल बच्चों में भी दिखने लगी हैं। बच्चों में मधुमेह सुनकर आश्चर्य होता है। शारीरिक श्रम में कमी और खान-पान में बदलाव को कम उम्र में इन बीमारियों की वजह बताते हुए चिकित्सकों का कहना है कि परिजन जागरूकता के साथ यह सुनिश्चित करें कि बच्चे खुले मैदानों में खेलें। संभव हो तो परिवार के बड़े लोग भी बच्चों के साथ खुले में जाकर कर खेलें। बच्चों को लिफ्ट की बजाय सीढियां चढने की आदत डालें। रात में भोजन के बाद टहलने की कोशिश करें। योग को दिनचर्या का हिस्सा बनायें। इससे मधुमेह को नियंत्रित किया जा सकता है।
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