तलबगार देखिए
--:भारत का एक ब्राह्मण.
संजय कुमार मिश्र अणु
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अब भाव नहीं केवल श्रृंगार देखिए,
रूप और यौवन का तलबगार देखिए।।
कोई अपना दुनियां में दिखता नहीं,
नए रिश्तों से सजे हुए बाजार देखिए।।
न खून है न कहीं किसी के हाथ में खंजर,
क़तील भी यहां का है होशियार देखिए।।
मंदिर के देश में है कहीं मूर्ति नहीं सजी,
इस तरफ मीनार उस तरफ मजार देखिए।
बिमोल ही सब बिक गए आवो हवा रस्म,
है दरिंदों का यहां सिपहसालार देखिए।।
जो कभी सच के लिए मर मिट जाते थे,
उनके गले गद्दारी का है पड़ा हार देखिए।।
जमाने ने उलट दी है सब वो बात पुरानी,
शेरों पर कुत्तों का जरा ललकार देखिए।।
जो कलतक कहता था सोनें की चिड़ियां,
आज कितना हो गया है बेकार देखिए।।
आपस के फुट में ही सब बर्बाद हो गया,
ऊपर से बेदर्द समय का खूब मार देखिए।।
मानव ही बन गया आज मानव का दुश्मन,
अवसरवाद से बर्बाद घर संसार देखिए।।
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