परिंदे प्यार के
ऐसे पकड़ों नहीं हमें कोई,
छल व कपट कर के कोई।
फैलाओ मत ना जाल तुम,
रखो ना पिंजरे में कैद तुम।।
क्यों चलते हो चाल कोई,
उड़ने दो हमको शान वही।
हम प्यारे है सारे जहान के,
और परिंदे है हम प्यार के।।
करतें क्यों हो कोई ऐसा,
कैदी को कैद में रखें जैसा।
उड़ने दो हमें अपनी उड़ान,
भरने दो हमें ऊॅंची उड़ान।।
चूम लेने दो हमें अंबर गगन,
घूमनें दो सुख व चैन अमन।
हम प्यारे इस सारे जहान के,
और परिंदे है हम प्यार के।।
प्यार मिलेगा हम को जहाॅं,
आएंगे-जाएंगे उड़कर वहाॅं।
प्यार जताओ बच्चों जैसा,
न करो हम परिंदो से धोका।।
फिर रोज आएंगे हम वहाँ,
चाहें तुम फिर रहो कहाँ।
हम प्यारे है सारे जहान के,
और परिंदे है हम प्यार के।।।।।
रचनाकार
गणपत लाल उदय
अजमेर राजस्थान
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