संकल्प अर्धसैनिक बलों का
हम तो मुसाफिर है केवल तुम्हारी कश्ती के
जिन्दगी जहां हमें कहेगी वही उतर जाऐंगे।
क्यों कि हम देश सेवा और निष्टा के पुजारी
चाहे कैसा भी हो मौसम रक्षा करेंगे तुम्हारी।
संकल्प जो हमने लिया सुरक्षा का तुम्हारा
पीछे कदम ना रखेगा अर्धसैनिक बल सारा।
सीमा से लेकर संसद कारखाने से तहखाने
जेल या न्यायालय मरूस्थल हो चाहे जंगल।
बर्फीले हो पहाड़ चाहे नदियों से कटे बीहड़
खड़े रहते ये जवान जान हथेली पर लेकर।
हमने लिया है संकल्प धरा रक्षा का हरपल
नसीब को भी वहाँ झुकना पड़ता निश्छल।
चाहे लू के हो थपेडे़ या जेठ की हो दोपहरी
धरा को सुरक्षित रखना ही डयूटी है हमारी।
जिसने किया कौशिश एवं कार्य का संकल्प
नसीब कोभी वहां झुकना पड़ता है निश्छल।
रचनाकार
गणपत लाल उदय अजमेर राजस्थान

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