Advertisment1

यह एक धर्मिक और राष्ट्रवादी पत्रिका है जो पाठको के आपसी सहयोग के द्वारा प्रकाशित किया जाता है अपना सहयोग हमारे इस खाते में जमा करने का कष्ट करें | आप का छोटा सहयोग भी हमारे लिए लाखों के बराबर होगा |

उठा पटक व मेल की सियासत का साल

उठा पटक व मेल की सियासत का साल

(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
साल 2022 विदा लेने वाला है। राजनीति के मैदान में इस साल कई बड़ी घटनाएं देखने को मिलीं । सियासी उठा पटक जमकर देखने को मिली तो उत्तर प्रदेश में कलह में उलझे मुलायम सिंह यादव के परिवार में एकता का दीपक जला। दुर्भाग्यवश इस एकता को मुलायम सिंह यादव नहीं देख पाए। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे से उनकी ही पार्टी शिवसेना के बागी विधायक एकनाथ शिन्दे ने भाजपा की मदद से सरकार छीन ली। राजस्थान में गहलोत और सचिन पायलट का झगड़ा पूरे साल चलता रहा। इस साल भी सचिन पायलट के मुख्य मंत्री बनने का सपना पूरा नहीं हो पाया। बिहार में नीतीश कुमार ने भाजपा का साथ छोड़ दिया और तेजस्वी यादव के महागठबंधन के साथ सरकार बनायी । राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने उम्मीद जगाई है हालांकि नेशनल हेराल्ड मामले ने गांधी परिवार का पीछा इस साल भी नहीं छोड़ा। इस साल अदालत में कई बड़े राजनीतिक मामले पहुंचे। महाराष्ट्र में संजय राउत नवाब मलिक और अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत राणा भी चर्चा में रहीं।

महाराष्ट्र की अदालतों में साल 2022 में राजनीतिक उथल-पुथल काफी देखने को मिली। संजय राउत, नवाब मलिक और अमरावती से निर्दलीय सांसद नवनीत राणा जैसे नेताओं की विभिन्न मामलों में गिरफ्तारी और बाद में उनकी जमानत याचिकाओं पर कानूनी लड़ाई इस साल के प्रमुख घटनाक्रम रहे। अदालतों ने 2017 के एल्गार परिषद-माओवादी लिंक मामले से संबंधित मुकदमे को भी निपटाया, जिसमें कुछ अभियुक्तों को राहत मिली थी। फरवरी में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेता और तत्कालीन महा विकास अघाडी (एमवीए) सरकार में पूर्व मंत्री नवाब मलिक ने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उनके खिलाफ दर्ज एक कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले को रद्द करने की मांग करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का रुख किया।सबसे ज्यादा सुर्खियों में शिवसेना नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत का केस रहा। चॉल के रीडेवलपमेंट प्रोजेक्ट में कथित धोखेबाजी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी ने उन्हें जुलाई में गिरफ्तार किया था। विशेष पीएमएलए अदालत ने उन्हें जमानत देने के साथ ही न्यायाधीश ने उनकी गिरफ्तारी को ष्अवैध, बिना कारण और विच-हंटष् करार दिया। ईडी को कडी फटकार लगायी। हालांकि, तब तक राउत को 100 से अधिक दिन जेल में बिताने पड़े।

राजस्थान में मुख्यमंत्री की कुर्सी से चिपके रहने का मोह अशोक गहलोत छोड़ नहीं पा रहे हैं। कुर्सी का मोह छूटे भी तो उस पर घोर प्रतिद्वंद्वी सचिन पायलट न बैठें, इसके लिए सभी अस्त्र-शस्त्र निकालकर 45 वर्षों की कांग्रेस के प्रति वफादारी को भुलाकर वो खुलकर सामने आ गए । कुल मिलाकर अब तक गांधी परिवार का सच्चा सिपहसालार कहे जाने वाले अशोक गहलोत का जो चेहरा सामने आया है, उसने सभी को आश्चर्य में डाल दिया है, क्योंकि कुछ महीने पहले जब पंजाब में ऐसी ही स्थिति उत्पन्न हुई थी, तब तत्कालीन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलने वालों में अशोक गहलोत सबसे आगे थे। उस समय गांधी परिवार के प्रतिनिष्ठा की बात थी। अब जब खुद की कुर्सी पर बात बन आई है तो सारी निष्ठा तार-तार हो गई है।

कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर गहलोत के समर्थकों का जो प्रकरण हुआ, उसने गांधी परिवार के आलाकमान की छवि को भी धूमिल कर दिया , इससे साफ हो गया कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी पर परिवार की वह पकड़ नहीं रह गई, जो पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी या राजीव गांधी के समय में हुआ करती थी।इसके बाद अशोक गहलोत के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए नामांकन की बात भी खटाई में पड़ गई । राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए नामांकन भी नहीं कर पाए। तर्क वही, बहुमत में विधायक नहीं चाहते कि अशोक गहलोत मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ें और यदि छोड़ें तो राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद छोड़ें। मानेसर प्रकरण के समय सरकार बचाने वाले 102 विधायकों में से ही किसी को मुख्यमंत्री बनाया जाए। अशोक गहलोत के लिए जब बात राष्ट्रीय अध्यक्ष का नामांकन न भरने पर आ गई तो फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर तो बने ही रहना था। अब तो यही है कि पहले कैसे राजस्थान को संभाला जाए? अगले साल वहां विधान सभा चुनाव होने वाले हैं । इस पूरे घटनाक्रम ने राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की हवा निकाल दी । भारत जोड़ने से ज्यादा कांग्रेस जोड़ने पर फोकस हो गया ।

गहलोत और पायलट के बीच आपसी विग्रह नया नहीं है। वर्ष 2018 की सर्दियों में जब कांग्रेस पार्टी साधारण बहुमत से राजस्थान की सत्ता में लौटी थी, तब पायलट को मुख्यमंत्री बनाने की बात थी, क्योंकि उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया था। उस समय अशोक गहलोत ने सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी को अपने पक्ष में कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कब्जा कर लिया था, जबकि राहुल गांधी को सचिन पायलट के पक्ष में बताया जा रहा था। तब भी एक प्रकरण ऐसा हुआ था, जिसने गहलोत और पायलट के बीच दूरियों को बढ़ाया था। उस समय दिल्ली से जयपुर लौट रहे अशोक गहलोत को एयरपोर्ट से वापस पार्टी नेतृत्व के पास लौटना पड़ गया था। मानेसर प्रकरण के समय तो अशोक गहलोत की कुर्सी जाते-जाते बची थी। उस दौरान उन्होंने सचिन पायलट को नाकारा-निकम्मा तक कह डाला था। पायलट को प्रदेश अध्यक्ष और उप मुख्यमंत्री पद से निष्कासित कर अपने विश्वसनीय नेताओं को बैठा दिया था। एक सवाल जो राजनीतिक हलकों में घूम रहा है, वह यह है कि क्या कारण है, जो गहलोत कैंप इतना आक्रमक हो गया? दरअसल, जिस दिन अशोक गहलोत को सोनिया गांधी ने दिल्ली बुलाया था और राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के लिए कहा था, उसी के आसपास सचिन पायलट ने भी दिल्ली में आलाकमान से मुलाकात की थी।यदि उसी दिन अशोक गहलोत से इस्तीफा ले लिया जाता और सचिन पायलट के नाम का ऐलान कर दिया जाता तो यह किस्सा वहीं खत्म हो जाता, लेकिन गहलोत कैंप को पूरा स्पेस दिया गया। खाचरियावास, संयम लोढ़ा, सुभाष गर्ग समेत कई नेता मुखर हो गए। राजनीति के जादूगर अशोक गहलोत ने अपनी चाल चल दी। शाम को नाटक से पर्दा उठा और इस्तीफों की झड़ी के बीच न केवल कांग्रेस आलाकमान की जगहंसाई हुई, बल्कि अति आत्मविश्वास में डूबे पायलट के फिलहाल मुख्यमंत्री बनने पर पूर्णविराम लग गया।अगले साल के दिन भी राजस्थान में कांग्रेस के लिए संकट वाले रह सकते हैं। असली परीक्षा आलाकमान यानी गांधी परिवार की है। उत्तर प्रदेश में प्रगतिशील समाजवादी पार्टी प्रमुख और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव ने बड़ा कदम उठाया है। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव सपा के बैनर तले लड़ने का रास्ता साफ कर दिया हैं। अपनी बहू डिम्पल यादव को मैनपुरी लोक सभा उप चुनाव में दो लाख से ज्यादा मतों से जीत दिलाने के बाद शिवपाल ने अपनी पार्टी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का सपा में विलय कर लिया है। इस प्रकार बीते साल ने बिहार और उत्तर प्रदेश में सियासी मेल भी कराया है।
हमारे खबरों को शेयर करना न भूलें| हमारे यूटूब चैनल से अवश्य जुड़ें https://www.youtube.com/divyarashminews https://www.facebook.com/divyarashmimag

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ