मानवता है
दीप मोहब्बत के मैं
दिल में जलता हूँ।
स्नेह प्यार की गंगा
हर घर में बहता हूँ।
दिलमें पड़े गये
बीज जो नफरत के।
उन्हें मिटाने को
प्रेम बरसात हूँ प्रेम बरसात हूँ।।
दीप मोहब्बत के मैं
दिल में जलता हूँ।
स्नेह प्यार की गंगा
हर घर में बहता हूँ।।
दीन दुखी के दिलो में
आस जगता हूँ।
मूरझाए चेहरो पर
फूल खिलाता हूँ।
दिलमें पड़े अंधेरे को
रोशन करता हूँ।
हंसी खुशी का माहौल
घर घर में फैलता हूँ।।
दीप मोहब्बत के मैं
दिल में जलता हूँ।
स्नेह प्यार की गंगा
हर घर में बहता हूँ।।
दर्द भरा हो खुद में
फिर भी नहीं दिखता।
हँसते हुए चेहरे से
सब को हँसता हूँ।
मानव धर्म की परिभाषा
सब को बतलाता हूँ।
और मानव होने का
कर्तव्य निभाता हूँ।।
दीप मोहब्बत के मैं
दिल में जलता हूँ।
स्नेह प्यार की गंगा
हर घर में बहता हूँ।।
जय जिनेंद्रसंजय जैन " बीना" मुंबई
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