शत शत नमन माँ हीराबेन
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मां हीराबेन का शुक्रवार 30 दिसम्बर को तड़के 100 साल की उम्र में निधन हो गया। हीराबेन को स्वास्थ्य संबंधी कुछ परेशानियों के चलते 28 दिसम्बर को सुबह अहमदाबाद के ‘यू एन मेहता इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी एंड रिसर्च सेंटर’ में भर्ती कराया गया था। अस्पताल ने अपने बुलेटिन में बताया, ‘हीराबेन मोदी का यूएन मेहता हार्ट हॉस्पिटल में इलाज के दौरान 30 दिसंबर 2012 को तड़के करीब साढ़े तीन बजे निधन हो गया।’ प्रधानमंत्री मोदी 28 दिसम्बर को भी दोपहर में दिल्ली से अहमदाबाद पहुंचे थे और अस्पताल में अपनी मां से मुलाकात की थी। वह एक घंटे से अधिक समय तक अस्पताल में रुके थे। हीराबेन गांधीनगर शहर के पास रायसन गांव में प्रधानमंत्री मोदी के छोटे भाई पंकज मोदी के साथ रहती थीं। उन्हें हीरा बा भी कहा जाता था। मां हीराबेन के निधन की खबर सुनते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अहमदाबाद पहुंचे। पीएम मोदी के छोटे भाई पंकज मोदी के आवास पर हीराबेन के पार्थिव शरीर को रखा गया था, जहां पीएम मोदी समेत सभी लोगों ने श्रद्धांजलि दी। यह शरीर तो नश्वर है। हमारे ऋषियों के आशीष जीवेत शरदः शतम अर्थात सौ शरद ऋतुओ तक जीवित रहो उसे सार्थक करते हुए वर्ष 2022 की विदाई से एक दिन पहले विदा हो गयीं। माँ एक समूचा संसार है जो अपने बच्चों के लिए सब कुछ करता है और अपना दुखदर्द ऐसी जगह छिपाकर रखता है जहाँ बच्चों की कभी निगाह ही नहीं पडती। माँ अपने लिए नहीं अपने बच्चों के लिए जीवित रहती है। माँ की सीख को पोटली में बाँध लें तो सफलताएं कदम चूमने लगती हैं।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी माता के बेहद करीब थे। हीरा बा के 100वें जन्मदिन पर पीएम मोदी ने अपनी मां के लिए एक ब्लॉग भी लिखा था, जिसमें उन्होंने अपनी मां और जीवन से जुड़ी कई यादों को जाहिर किया था। आज उनके स्वर्गवासी होने पर श्रद्धांजलि स्वरूप पीएम मोदी के उन्हीं शब्दों को दोहराना चाहता हूँ । मोदी ने अपनी माँ हीराबेन की यादोँ को साझा करते हुए कहा था मां, ये सिर्फ एक शब्द नहीं है। जीवन की ये वो भावना होती जिसमें स्नेह, धैर्य, विश्वास, कितना कुछ समाया होता है। दुनिया का कोई भी कोना हो, कोई भी देश हो, हर संतान के मन में सबसे अनमोल स्नेह मां के लिए होता है। मां, सिर्फ हमारा शरीर ही नहीं गढ़ती बल्कि हमारा मन, हमारा व्यक्तित्व, हमारा आत्मविश्वास भी गढ़ती है और अपनी संतान के लिए ऐसा करते हुए वो खुद को खपा देती है, खुद को भुला देती है। आज मैं अपनी खुशी, अपना सौभाग्य, आप सबसे साझा करना चाहता हूं। मेरी मां, हीराबा आज 18 जून को अपने सौवें वर्ष में प्रवेश कर रही हैं। यानी उनका जन्म शताब्दी वर्ष प्रारंभ हो रहा है। पिताजी आज होते, तो पिछले सप्ताह वह भी 100 वर्ष के हो गए होते। यानी 2022 एक ऐसा वर्ष है, जब मेरी मां का जन्मशताब्दी वर्ष प्रारंभ हो रहा है और इसी साल मेरे पिताजी का जन्मशताब्दी वर्ष पूर्ण हुआ है। स्मृतियों में खोये मोदी ने बताया था कि मेरी मां जितनी सामान्य हैं, उतनी ही असाधारण भी। ठीक वैसे ही, जैसे हर मां होती है। आज जब मैं अपनी मां के बारे में लिख रहा हूं, तो पढ़ते हुए आपको भी ये लग सकता है कि अरे, मेरी मां भी तो ऐसी ही हैं, मेरी मां भी तो ऐसा ही किया करती हैं. ये पढ़ते हुए आपके मन में अपनी मां की छवि उभरेगी।
सच में उस दिन मोदी जी की अपनी माँ के जन्मशती वर्ष पर स्मृतियों को पढकर मुझे अपनी माँ सीता देवी की बहुत याद आयी थी। माता जी का यह नाम मैंने ही रखा था। आज से 28 साल पहले माँ का स्वर्गवास हुआ था। मैं लखनऊ में था। यहां से प्रकाशित दैनिक स्वतंत्र भारत में पत्रकार प्रूफरीडर हुआ करता था। गोमती नगर के पत्रकारपुरम में रहता था। मंगलवार का दिन था और मैं सुन्दर काण्ड का पाठ कर रहा था तभी गाँव से शिवराज आए थे और बताया कि अम्मा नहीं रहीं । यह सुनते ही रामचरितमानस बंद करके रख दी थी। उस दिन गाँव तक पहुंचते उनकी ही यादें साथ में थीं । चार भाईयों में मैं सबसे छोटा था इसलिए जिद करता रहता था। इसके लिए कभी-कभी डाट भी पडती थी। ऐसी ही जिद एकबार की थी और उनसे पूछा अम्मा अपना नाम बताओ। माँ किसी स्कूल में पढने नहीं गयीं । उन दिनों गांव में लडकियों की बात तो दूर लडके तक सभी पढने नहीं जाते थे। अम्मा ने कहा मेरा तो कोई नाम ही नहीं । घर में बडी थी तो सभी बिटोला कहते थे। मुझे तो स्वतंत्र भारत के दफ्तर में माता पिता का नाम लिखवाना था सो मैंने कहा अम्मा अब आज से तुम्हारा नाम होगा सीता देवी त्रिपाठी क्योंकि भइया हम भाईबहन पिता जी को भइया कहते थे का नाम है पंडित रामलाल त्रिपाठी ।
बेटे के मुख से माँ का नामकरण होता देख अम्मा जिस तरह हंसी थी वो आज भी सभी गम दूर कर हंसा सकती है। ऐसी ही कितनी बातें उस दिन स्मृति पटल पर ताजा हो गयीं थी जब पीएम मोदी ने कहा मुझे याद है मां की तपस्या, उसकी संतान को, सही इंसान बनाती है. मां की ममता, उसकी संतान को मानवीय संवेदनाओं से भरती है. मां एक व्यक्ति नहीं है, एक व्यक्तित्व नहीं है, मां एक स्वरूप है। हमारे यहां कहते हैं, जैसा भक्त वैसा भगवान। वैसे ही अपने मन के भाव के अनुसार, हम मां के स्वरूप को अनुभव कर सकते हैं।
इसके बाद माँ हीरा बेन का परिचय देते हुए मोदी ने बताया था कि मेरी मां का जन्म, मेहसाणा जिले के विसनगर में हुआ था। वडनगर से यह बहुत दूर नहीं है। मेरी मां को अपनी मां यानी मेरी नानी का प्यार नसीब नहीं हुआ था। एक शताब्दी पहले आई वैश्विक महामारी का प्रभाव तब बहुत वर्षों तक रहा था। उसी महामारी ने मेरी नानी को भी मेरी मां से छीन लिया था। मां तब कुछ ही दिनों की रही होंगी। उन्हें मेरी नानी का चेहरा, उनकी गोद कुछ भी याद नहीं है। आप सोचिए, मेरी मां का बचपन मां के बिना ही बीता, वह अपनी मां से जिद नहीं कर पाईं, उनके आंचल में सिर नहीं छिपा पाईं। मां को अक्षर ज्ञान भी नसीब नहीं हुआ, उन्होंने स्कूल का दरवाजा भी नहीं देखा। उन्होंने देखी तो सिर्फ गरीबी और घर में हर तरफ अभाव। मोदी कहते हैं हम आज के समय में इन स्थितियों को जोड़कर देखें तो कल्पना कर सकते हैं कि मेरी मां का बचपन कितनी मुश्किलों भरा था। शायद ईश्वर ने उनके जीवन को इसी प्रकार से गढ़ने की सोची थी। आज उन परिस्थितियों के बारे में मां सोचती हैं, तो कहती हैं कि ये ईश्वर की ही इच्छा रही होगी लेकिन अपनी मां को खोने का, उनका चेहरा तक न देख पाने का दर्द उन्हें आज भी है। बचपन के संघर्षों ने मेरी मां को उम्र से बहुत पहले बड़ा कर दिया था। वघ्ह अपने परिवार में सबसे बड़ी थीं और जब शादी हुई तो भी सबसे बड़ी बहू बनीं। बचपन में जिस तरह वघ्ह अपने घर में सभी की चिंता करती थीं, सभी का ध्यान रखती थीं, सारे कामकाज की जिम्मेदारी उठाती थीं, वैसे ही जिम्मेदारियां उन्हें ससुराल में उठानी पड़ीं। इन जिम्मेदारियों के बीच, इन परेशानियों के बीच, मां हमेशा शांत मन से, हर स्थिति में परिवार को संभाले रहीं। सचमुच माँ ऐसी ही होती है। आज माँ हीराबेन के गोलोकवासी होने पर उन सभी माताओं को शत शत नमन जो इस धरती पर है अथवा स्वर्ग से आशीर्वाद दे रही हैं।
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