इस रंग-बिरंगी दुनियां में
इस रंग-बिरंगी दुनियां में सबकी अलग पहचान है,कई-तरह की भाषाऍं और कई तरह के पहरान है।
कही नफरतों की दरार तो कही नम्रता-व्यवहार है,
कोई रामायण गीता पढ़ते कोई पढ़ता ये कुरान है।।
कही ऊॅंचे ऊॅंचे पहाड़ तो कही जंगल और झाड़ है,
कही हरे भरे खेत-खलिहान कही वृक्ष यह ताड़ है।
कही ईट-पत्थरों की दीवार कही काॅंटों की बाड़ है,
कही गाॅंव शहर महानगर तो कही पर ये उजाड़ है।।
कोई करते राम राम तो कोई करते दुआ सलाम है,
कही पर होता ये सवेरा तो कही पर होती शाम है।
कही किसी का मान है और किसी का अपमान है,
कोई बनाता-पहचान है तो कोई गंवाता ये नाम है।।
इस रंग बिरंगी दुनियां में सबका अलग ही काम है,
कोई करते मेहनत मजदूरी कोई करता आराम है।
अच्छाई-बुराई का हर विवरण परमेश्वर के पास है,
जो जैसा यह कर्म करेगा उसका वैसा परिणाम है।।
शक का कोई ईलाज एवं चरित्र का प्रमाण नही है,
पर इंटरनेट के ज़माने में दुनिया रिश्तें भूल रही है।
नही अपनो का अपनो पर ही विश्वास बात सही है,
पर चंद्रमा पर ज़मीन-खरीदकर चैन से सो रही है।।
रचनाकार गणपत लाल उदय, अजमेर राजस्थान
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