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मकान और घर

मकान और घर

जिस दिन मकान , घर में बदल जायेगा,
सारे शहर का मिजाज बदल जायेगा।
जिस दिन चिराग गली में जल जायेगा,
सारे गाँव का अँधेरा छंट जाएगा।
आने दो रोशनी तालीम की बस्ती में,
बस्ती का भी अंदाज़ बदल जायेगा।
रहते जो भाई चारे के साथ गरीबी में,
खुदगर्जी का साया उन पर पड़ जायेगा।
कर दो मुक्त आसमां को, बाजों से,
परिंदों को नया गगन नजर आएगा।
भूखे को दे दो एक निवाला रोटी का,
गुलर में उसे पकवान नजर आएगा।
दौलत की हबस का असर तो देखना,
तन्हाई का दायरा, कीर्ति बढ़ता जायेगा।
उड़ जाएगी नींद सियासतदानों की,
जब आदमी मुकम्मल इंसान बन जायेगा।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
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