लगाव, प्रभाव व सत्ता परिवर्तन!
(डाॅ. भरत मिश्र प्राची-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
देश में दिल्ली नगर निगम, हिमाचल प्रदेश एवं गुजरात राज्य विधान सभा चुनाव साथ हीं अन्य राज्यों के लोकसभा, विधान सभा उप चुनाव सम्पन्न हो गये, चुनाव परिणाम भी आ गये जहां प्रायः पहले से मतदान प्रतिशत कम देखा गया। इन चुनावों में सहानुभूति, लगाव-प्रभाव एवं सत्ता परिवर्तन का दौर नजर आया।
दिल्ली नगर निगम जहां भाजपा का 15 साल तक वर्चस्व बना रहा वहां आप ने इस चुनाव में 250 वार्ड में से 134 वार्ड पर जीत दर्ज कर अपना वर्चस्व कायम कर लिया। जब कि भाजपा को 104 वार्ड मिले तो भाजपा से पूर्व नगर निगम पर वर्चस्व कायम रखने वाली कांग्रेस को मात्र 9 वार्ड ही हाथ आये । जहां सत्ता परिवर्तन का दौर देखने को मिला। इसी तरह विधान सभा चुनाव में हिमाचल प्रदेष में महंगाई के मुद््दे को लेकर सत्ता परिवर्तन का दौर देखने को मिला जहां 68 सीट वाली विधान सभा में 40 सीट पर जीत दर्ज करा कर कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बेदखल का दिया। हिमाचल की जनता ने इस चुनाव में कांग्रेस पर अपना भरोसा जताया जहां मोदी फैक्टर कोई काम नहीं आया। भाजपा को मात्र 25 सीट हीं हाथ आई, 3 अन्य के खाते में गई एवं आप अपना खाता भी नहीं खोल पाई।
गुजरात राज्य के विधान सभा चुनाव में पूर्णरूपेण मोदी एवं शाह का गृह प्रदेश होने का लगाव-प्रभाव देखने को मिला जहां इस चुनाव में भाजपा ने 182 सीट वाली विधान सभा में से दो तिहाई बहुमत से भी ज्यादा सीट 156 पर अपनी जीत दर्ज कराकर सत्ता पर फिर से कब्जा जमा लिया। कांग्रेस पहले से 61 सीट गंवाकर मात्र 17 सीट पर ही जीत हासिल कर पाई। इस चुनाव में भारी भरकम सीट पर जीत का दावा कर सत्ता तक पहुंचने की बात करने वाली आप पार्टी को मात्र 5 सीटें मिलीं। वह भूल गई कि गुजरात राज्य देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं गृह मंत्री अमित शाह का गृह प्रदेश भी है जहां कि आम जनता पर देष की सत्ता पर अपने राज्य के हीं इन दोनों सर्वोच्य पदों पर विराजमान का लगाव-प्रभाव कायम रहेगा जिसके आगे किसी भी तरह का लाभ फैक्टर का फतवा काम नहीं आयेगा। यह एक सच्चाई भी है जिसे नकारा नहीं जा सकता।
इस चुनाव के साथ-साथ देश में लोकसभा एवं विधानसभा की खाली पड़ी सीट पर उप चुनाव भी हुये जहां कहीं सत्ता परिवर्तन तो कहीं सहानुभूति की लहर नजर आई। इन उप चुनाव में उत्तर प्रदेश की लोकसभा मैनपुरी से सपा उम्मीदवार पूर्व लोकसभा सदस्य मुलायम सिंह यादव की बहू डिम्पल ने भाजपा उम्मीदवार रघुराज सिंह शाक्य को 2 लाख 88 हजार चार सौ एक्सठ वोटों से हराकर जीत दर्ज की जहां सहानुभति लहर साफ-साफ नजर आ रही है। इसी तरह की सहानुभूति लहर राजस्थान में सरदार शहर विधानसभा में तत्कालीन विधायक भंवर लाल शर्मा की अचानक मृत्यु उपरान्त खाली हुये विधानसभा सीट के उपचुनाव में देखने को मिली जहां कांग्रेस उम्मीदवार तत्कालीन विधान सभा सदस्य भंवर लाल शर्मा के सुपुत्र अनिल शर्मा विजयी रहे। उत्तर प्रदेश के रामपुर सदर विधानसभा उपचुनाव में वर्षो से सपा के पास रही सीट पर भाजपा उम्मीदवार आकाश सक्सेना, बिहार राज्य कुढ़नी से सत्तारूढ़ महा गठबंधन जदयू मनोज कुशवाहा को हराकर भाजपा उम्मीदार केदार प्रसाद गुप्ता ने अपनी जीत दर्ज कराकर सत्ता परिवर्तन को दर्शाया। छत्तीसगढ़ एवं ओडिशा राज्य के विधान सभा उप चुनाव में सीट सत्ता पक्ष के पास ही बनी रहीं। छत्तीसगढ़ राज्य के नक्सल प्रभावी क्षेत्र कांकेर जिलेकी भानुप्रताप पुर सीट पर सत्तारूढ़ कांग्रेस प्रत्याशी सावित्री मांडवी एवं ओडिसा राज्य की पदमपुर सीट से बीजद उम्मीदवार वर्षा सिंह बरिहा ने जीत दर्ज कराकर सत्ता पक्ष बनाये रखा।
इस तरह इन चुनावों के दौरान कहीं सत्ता परिवर्तन तो कहीं सहानुभूति लहर तो कहीं लगाव - प्रभाव देखने को मिला। इन चुनावों के बाद देश के कई प्रमुख राज्यों में वर्ष 2023 के अंतराल में विधानसभा के चुनाव होने वाले है। इन चुनावों में भी सत्ता परिवर्तन के आसार नजर आ रहे है। वर्ष 2024 में लोकसभा के चुनाव है जिसपर सत्ता पक्ष एवं विपक्ष दोनों की नजरें टिकी हुई है। विपक्षी पार्टिया सत्ता तक पहुंचने का प्रयास जोर शोर से करती नजर तो आ रही है पर आपसी मेल की कमी इनके इस सपने को साकार करने में बाधक अवश्य है। कांग्रेस को मजबूत करने की दिशा में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भारत जोड़ों की यात्रा पर निकल पड़े है। इस यात्रा के पीछे मिशन 2024 का लोकसभा चुनााव ही है। कांग्रेस को इस चुनाव में इस यात्रा से लाभ तो हो सकता है पर चुनाव पूर्व विपक्षी एकता न होने से चुनाव में भाजपा को फिर से लाभ मिलता नजर आ रहा है। यदि लोकसभा चुनाव पूर्व विपक्षी दलों में एकता हो सकती है और मतदान का बिखराव रूक सकता है तो उसका राजनीतिक लाभ उसे मिल सकता है। समय के अनुसार परिवर्तन होते रहते है। अभी लोकसभा चुनाव दूर है। वर्तमान में नरेन्द्र मोदी सर्वाधिक मजबूत एवं लोकप्रिय छवि वाले जननेता बने हुये है जिनके आगे विपक्ष में कोई अभी जननेता उभर कर प्रबलदावेदारी करते नजर नहीं आ रहा है। हां, समय परिवर्तनशाील है। देश में उभरी समस्याएं सत्ता परिवर्तन का कारण बन सकती है।
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