गलत चयन
मनोज मिश्र
कुछ सपने बुने थे उसने उसके
जिससे संबंधों को मना किया।
वह समझी नया जमाना है
पुराने का क्या जानें प्रीत नया।।
दिल धड़का था जिसके लिए
सब संबंधों से था मुंह मोड़ लिया।
जन्म बचपन स्नेह वात्सल्य
जिसके लिए सबको छोड़ दिया।।
निज धर्म न माना न चरित्र जाना
बस इंस्टाग्राम पर फिदा हुई।
झटके से तोड़े सारे नाते बंधन
सोचा पिंजर तोड के विदा हुई।।
साथ उसका नहीं रहा मनभावन
तनाव क्षोभ में बीता जीवन।
रोज रोज कहासुनी हाथापाई
उसने यह जीवन कभी न चाही।।
पर अब इस रास्ते से लौटती कैसे
क्या कहती उन्हें जिन्हें ठुकरा आयी।
सिर्फ उसका वह हो न सका
सिर्फ उसके लिए वह जी न सका।।
पर उसने भी था ठान लिया
सुधारने का पूरा प्रयास किया।
एक दिन उसकी गर्दन दब गई
पैंतीस टुकड़ों में वो बट गयी।।
खोज खबर लेने वाला न था कोई
यही बात कातिल को निश्चिंत करा गई।
एक टुकड़ा एक एक रात को फेंका
आदमी से था बन गया कसाई।।
फिर किसी ने पिता को खबर पहुंचाई
कई दिनों से श्रद्धा की सुध नहीं आई।
पिता तुरंत दिल्ली को दौड़े भागे
रपट लिखाई पुलिस को जाके।।
बातों की फिर परत खुल गयी
कड़ी एक से एक मिल गयी।
पर जो थी प्राणों से प्यारी
वह न थी अब जीवित अभागी।।
क्यों माता पिता का प्यार न समझें
खुद पे जोर न कदम भी बहके।
दुर्गति जीवन की हुई तब समझ मे आयी
पर अब तक हो गयी देर बड़ी भाई।।-
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