बैलिस्टिक हेलमेट से असाल्ट तक
(अशोक त्रिपाठी-हिन्दुस्तान फीचर सेवा)
हमारे देश को वर्ष 2022 रक्षा के क्षेत्र में स्वदेशी आत्मनिर्भरता देने में विशेष तौर पर याद किया जाएगा। हमारी मिसाइलें चीन की राजधानी बीजिंग तक मार करने में सक्षम है। फ्रांस से राफेल डील का अंतिम विमान भी साल बीतते-बीतते भारत आ गया है। नाइट विजन तकनीक से लैस बैलिस्टिक हेलमेट भी इसी साल सेना को सौंपा गया है जो सैनिकों के लिए सुरक्षा घेरा मजबूत करता है। इसी के साथ स्वदेशी बुलेटप्रूफ जैकेट एके 47 की 9 एम एम राउण्ड की गोलियों से बचाने में सक्षम हैं। इसी क्रम में एके 203 असाल्ट राइफल रूस की असाल्ट राइफल की तर्ज पर बनाई गयी है। उत्तर प्रदेश के अमेठी में रूस की मदद से इनका निर्माण हो रहा है। इस राइफल से 200 मीटर तक खडे दुश्मन को निशाना बनाया जा सकता है। इसी साल ने ऐसी आधारभूमि तैयार की है जिससे अगले साल अर्थात 2023 में सेना के लिए मानवरहित विमान सेवा उपलब्ध हो सकेगी। स्वदेशी हाइड्रोजन ट्रेन की नींव भी 2022 ने मजबूत की है। भारतीय वायु सेना ने 29 दिसम्बर को एसयू-30एमकेआई विमान से एक जलपोत को निशाना साधकर आकाश से प्रक्षेपित ब्रह्मोस मिसाइल के अधिक दूरी की क्षमता वाले संस्करण का सफल परीक्षण किया। मिसाइल ने बंगाल की खाड़ी क्षेत्र में अपेक्षित मिशन उद्देश्यों को प्राप्त किया। इससे देश की रणनीतिक हमले की क्षमता में वृद्धि होगी। इसके साथ, वायु सेना ने बहुत लंबी दूरी पर जमीन या समुद्री लक्ष्यों के खिलाफ एसयू-30एमकेआई विमान से सटीक हमले करने के लिए ‘महत्वपूर्ण क्षमता विस्तार’ प्राप्त कर लिया है।
भारत में रक्षा क्षेत्र को एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में चिह्नित किया जाता है जहाँ आत्मनिर्भरता के सभी अवसर मौजूद हैं। भारतीय सशस्त्र बलों की वृहत आधुनिकीकरण आवश्यकताओं के साथ ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण ने रक्षा क्षेत्र के स्वदेशीकरण के लक्ष्य को साकार करने की महत्त्वाकांक्षा को गति प्रदान की है। एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार आत्मनिर्भर हथियार उत्पादन क्षमताओं में भारत 12 हिंद-प्रशांत देशों के बीच चैथे स्थान पर है । भारत 2016-20 की अवधि में विश्व का दूसरा सबसे बड़ा हथियार आयातक भी रहा है लेकिन अब हम रक्षा के छेत्र में निर्यातक की भूमिका निभा रहे हैं। रक्षा उत्पादन क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के उल्लेखनीय प्रयासों के बावजूद उच्च आयात बिलों के कारण स्वदेशीकरण की राह अभी आसान नहीं है और इसे संशोधित किये जाने की आवश्यकता है। रक्षा स्वदेशीकरण आयात निर्भरता को कम करने के साथ-साथ आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के एक तरीके के रूप में देश के भीतर रक्षा उपकरणों के विकास और निर्माण की प्रक्रिया जारी है ।आत्मनिर्भर भारत विजन में रक्षा अनुसंधान विकास संस्थान (डीआरडीओ ) और रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रम (डीपीएसयूएस) प्रमुख अग्रणी संस्थान हैं।
हमारे देश के लिए वर्ष 1983 को रक्षा स्वदेशीकरण में एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर के रूप में चिह्नित किया जाता है जब सरकार ने निम्नलिखित 5 मिसाइल प्रणालियों को विकसित करने के लिए एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम को मंजूरी दी थी। इनमें पृथ्वी (सतह से सतह) आकाश (सतह से हवा में) त्रिशूल (पृथ्वी का नौसेना संस्करण) और नाग (एंटी टैंक) तथा अग्नि बैलिस्टिक मिसाइल शामिल हैं।
भारत आज स्टार्टअप्स का दूसरा सबसे बड़ा हब है जिसका मतलब है कि इनोवेशन यानी नए विचार अधिक आ रहे हैं, यह मेक इन इंडिया की प्रक्रियाओं को तेज करेगा और लागत को कम करेगा और इससे पूरी दुनिया में भारत प्रतिस्पद्र्धी बनेगा। नौसेना स्वदेशीकरण नवाचार संगठन ने पिछले एक साल में रक्षा उत्पादन के लिये 30 पेटेंट दायर किये हैं। यह उद्योग को विकसित करने और दुनिया में प्रतिस्पद्र्धी होने तथा वैश्विक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पहल करने पर बल देगा। इसका उद्देश्य भारत को एक रक्षा उत्पादन केंद्र बनाना है और यदि भारत को भारतीय सुरक्षा क्षेत्र में शुद्ध सुरक्षा प्रदाता बनना है तो इन पहलुओं को ध्यान में रखना चाहिये। रक्षा क्षेत्र में भारत की प्रमुख स्वदेशी पहले हैं डिफेंस इंडिया स्टार्टअप चैलेंज आईएनएस विक्रांत- एयरक्राफ्ट कैरियर धनुष- लंबी दूरी की तोपें अरिहंतरू परमाणु पनडुब्बी और प्रचंडरू हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर।
रक्षा क्षेत्र से संबंधित कुछ चुनौतियाँ भी हैं । सबसे प्रमुख है आयात पर उच्च निर्भरता। भारत में रक्षा क्षेत्र आयात पर बहुत अधिक निर्भर है और बदलती भू-राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उपकरणों की प्राप्ति में प्रायः देरी होती है। उदाहरण के लिए, रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत अभी भी वर्ष 2018 में हस्ताक्षरित एक सौदे के तहत एस-400 वायु रक्षा प्रणालियों की डिलीवरी की प्रतीक्षा ही कर रहा है। इसके अलावा, भारतीय वायु सेना के लिए 12 सुखोई-30 एमकेआई विमान और 21 मिग-29 लड़ाकू जेट सहित कई नए सौदे अभी कतार में ही हैं।
रक्षा विनिर्माण क्षेत्र में भारतीय एम एस एम ईएस और डीपीएसयूएस की क्षमता का दोहन और सुगम प्रसार के साथ-साथ कच्चे माल के सुचारू परिवहन की सुविधा प्रदान करने के लिए देश भर में समर्पित रक्षा औद्योगिक गलियारों का विस्तार करना आवश्यक है। उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित करने की सरकार की पहल इस दिशा में एक स्वागतयोग्य कदम है। रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने 7 अप्रैल, 2022 को नई दिल्ली में प्रमुख उपकरण/प्लेटफॉर्म वाली 101 वस्तुओं की तीसरी सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची जारी की थी। रक्षा मंत्रालय के सैन्य मामलों के विभाग की ओर से अधिसूचित यह सूची उन उपकरणों/प्रणालियों पर विशेष ध्यान केंद्रित करती है, जिन्हें विकसित किया जा रहा है और अगले पांच वर्षों में इन्हें फर्म ऑर्डरों में रूपांतरित करने की संभावना है। इन हथियारों और प्लेटफार्मों को दिसंबर, 2022 से दिसंबर, 2027 तक क्रमिक रूप से स्वदेशी बनाने की योजना है। अब इन 101 वस्तुओं की खरीदारी रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) 2020 के प्रावधानों के अनुरूप स्थानीय स्रोतों से की जाएगी। यह पहली सूची (101) और दूसरी सूची (108) को जारी करने का अनुसरण करती है। पहली और दूसरी सूची को क्रमशः 21 अगस्त, 2020 और 31 मई, 2021 को जारी किया गया था। युद्ध उपकरण, जो एक लगातार बनी रहने वाली जरूरत है, के आयात प्रतिस्थापन पर विशेष जोर दिया गया है। स्थानीय स्तर पर निर्मित होने वाले 310 रक्षा उपकरणों वाली इन तीन सूचियों को जारी करने के पीछे की भावना घरेलू उद्योग की क्षमताओं में सरकार के इस बढ़ते विश्वास को दिखाती है कि वे सशस्त्र बलों की मांग को पूरा करने के लिए अंतर्राष्घ्ट्रीय मानकों के उपकरणों की आपूर्ति कर सकते हैं। इससे प्रौद्योगिकी और विनिर्माण तीसरी सूची में अत्यधिक जटिल प्रणाली, सेंसर, हथियार और गोला-बारूद शामिल हैं। ये हैंरू हल्के टैंक, माउंटेड आर्टी गन सिस्टम (155एमएमग् 52सीएएल), पिनाका एमएलआरएस के लिए गाइडेड एक्सटेंडेड रेंज (जीईआर) रॉकेट, नौसेना के उपयोग के लिए हेलीकॉप्टर (एनयूएच), नई पीढ़ी की अपतटीय पेट्रोल पोत (एनजीओपीवी), एमएफ स्टार (जहाजों के लिए रडार), मध्यम रेंज की पोत-रोधी मिसाइल (नौसेना संस्करण), अत्याधुनिक हल्के टॉरपीडो (शिप लॉन्च), उच्च सहनशील स्वायत्त अंडरवाटर वाहन, मध्यम ऊंचाई की अधिक सहनशक्ति मानव रहित हवाई वाहन(मेल यूएवी), विकिरण रोधी मिसाइल और लॉटरिंग युद्ध सामग्री।
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