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हम सरहद के रखवाले

हम सरहद के रखवाले

हम मातृभूमि सरहद पर करते‌-रहते रखवाली,
इस के लिए कुर्बानी देना समझते‌ गौरवशाली।
इन घुसपैठियों, उग्रवादियों नक्शलवादियों से,
भू-रक्षा के हेतु भिड़ जाएंगे आतंकवादियों से।।


हम हर मौसम को सहने एवं इसमे रहने वालें,
चाहें पांव में हों जाएं गहरे हमारे अनेंक छाले।
ये आंधी-तूफान चाहें बादल छाएं काले-काले,
फिर भी इसको हंसके सह जातें हम मतवाले।।


हम जंगल पहाड़ियों में रहने वालें ऐसे बासिंदे,
लगातें रहते नाके गस्त पेट्रोलिंग लेकर बंदूके।
भू-रक्षा में बहाना पड़े तो बहा देंगे खूनी नाले,
है बहुत हमारे पास ये गोला बारूद के संदूके।।


हम रखते सदैव जीत हासिल करने का जुनून,
इस कदर का उबाल है अवश्य ही हमारे ख़ून।
अपनें इरादों में विजय की गूंज रखतें है सदैव,
और अपनें तिरंगे का रखते है सर्वदा ही मान।।


इस आसमान से भी ऊंची उड़ते है हम उड़ान,
कदम-कदम पर चिंगारी फिर भी घूमें जहान।
यह वक्त आजमाएं जाता हमारी किस्मत को,
हम लिए घूमते-रहते सर्वदा बंद मुट्ठी में जान।।


रचनाकार गणपत लाल उदय, अरांई अजमेर राजस्थान
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