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बोलो बेटी क्या कमी थी

बोलो बेटी क्या कमी थी

बोलो बेटी क्या कमी थी ,
हम माँ-बाप के संस्कार में,
छोड़ दी तुम घर-द्वार अपना,
आशिक,पिया के इकरार में।
बोलो बेटी क्या...।


बड़ी श्रद्धा से पाला था तुमको,
कई कष्टों से निकाला था तुमको,
हमें छोड़कर तुम चली गयी,
कसाई,जालिम के परिवार में ।
बोलो बेटी क्या...।


जाने कितनी तुम तड़पी होगी,
सनकी,आशिक के घर-द्वार में,
मिली तुम्हें सेकुलर प्यार की सजा,
अपने प्रेमी के घर संसार में।
बोलो बेटी क्या...।


पैंतीस टुकड़ों में काटकर तुमको,
फेंक दिया जंगल झाड़ में
दिखा दी उसने औकात अपनी,
अपने मजहबी प्यार में।
बोलो बेटी क्या...।


कर रहा हूँ बेटियों से एक विनती,
नहीँ रहना इन भेड़ियों के सरोकार में,
नहीं तो मिलेंगे तेरे कई टुकड़े,
गाँव;शहर,जंगल,पहाड़ में।
बोलो बेटी क्या...।


आज सेकुलर होंठ क्यों चुप हैं,
गंदी राजनीति के दरवार में,
देख रहे सब जालिम का तमाशा,
सेकुलरिज्म के बाजार में।
बोलो बेटी क्या...।
---0--- अरविन्द अकेला,पूर्वी रामकृष्ण नगर,पटना-27
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