कन्यादान
दानों में दान महादान है होता ,
पोषी पाली बेटी का कन्यादान ।
कन्यादान होते बेटी होती परायी ,
सारा जग ही तब लगता वीरान ।।
घर में लगता जैसे कोई नहीं है ,
घर भी लगता फिर सूना सूना ।
लगे जैसे सब छिन गया मुझसे ,
खुशी में भी दु:ख है गहरा दूना ।।
नाते रिश्तेदार भी घर भर भरे ,
जिनमें सुहाता तब कोई नहीं है ।
प्राकृतिक परम्परा संतुष्टि देता ,
रीति-रिवाज भी हमारा यही है ।।
अपरिचित से रिश्ता है जुड़ता ,
बढ़ जाता आपसी यह संबंध ।
जब होती है बेटी की ये बिदाई ,
बढ़ जाता यह मानसिक द्वंद्व ।।
एक तो होती बेटी की बिदाई ,
तत्क्षण संबंधी भी होते विदा ।
बेटी की बिदाई तत्क्षण भूलते ,
धीरे धीरे उनसे भी होते जुदा ।।
धीरे धीरे गम का घाव भरता ,
जब फोन से होता बेटी से बात ।
तब मिलता है दिल को संतुष्टि ,
शुकुन से नींद भी आती है रात ।।
पूर्णत: मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )बिहार ।
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