तुमसे यह कैसा नाता है!
बीत गए हैं कई बरस परतुमसे यह कैसा नाता है!
मीत तुम्हारी सुधियों को
पागल भूल नहीं पाता है!
बातें वही पुरानी मन की
गलियों में घूमा करतीं हैं
बीते जहां-जहां पावन पल
नित उनको चूमा करतीं हैं
आकुल नयनों में यादों का
बादल बरबस छा जाता है
देख-देखकर चित्र तुम्हारा
नित बातें करता रहता हूं
तन्हाई के निर्जन बन में
मैं जाने क्या-क्या सहता हूं
साथ निभाया जितना तुमने
अंतर्मन को महकाता है
भरे-भरे घर के सब कमरे
अब खाली-खाली लगते हैं
नींद नहीं आती पलकों के
घर-द्वार रातभर जगते हैं
चैन नहीं आता आकुल मन
खुद से खुद ही बतियाता है
बीत गए हैं कई बरस पर
तुमसे यह कैसा नाता है!
मीत तुम्हारी सुधियों को
पागल भूल नहीं पाता है!
*
~ जयराम जय
'पर्णिका'बी-11/1,कृष्ण विहार,आवास विकास,कल्यणपुर,कानपुर-208017(उ.प्र.)
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