दौलत से मिले सब कुछ,
पर बचपन मिल नहीं पाता,बचपन मिल भी जाये तो,
लड़कपन मिल नहीं पाता।
बच्चों के संग बच्चा बन
पचपन में भी हम खेलें,
बड़े होने के अहसासों से,
मन मुक्ति नहीं पाता।
मुँह से तोड़कर गोली
मिल बाँट कर खाते थे,
वो मिलकर बाँट कर खाना
किसी को अब नहीं भाता।
न जाति की कहीं बातें
न धर्म का ही झगड़ा था,
गली गाँव में रिश्तों का
वह दौर नज़र नहीं आता।
अ कीर्ति वर्द्धन
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