शारदे! अंत:पटल पर
ज्ञान-दीपक बार दें।।विकल है मन- प्राण
चेतनहीन-चेतन-तंत्र सारे,
तमस के इस सघन वन के
दंभ ने हैं पग पसारे।
दृष्टि की संपूर्णता को
बस नया आधार दे।।
विश्व जड़ता की धरा से
उठे, ऊपर स्वच्छ मन से,
सर्व जन के लिए थोड़ा ही
करे निष्कपट प्रण से।
मानवोचित कीर्ति-पथ में
शुद्ध श्रेष्ठ विचार दे।।
संकटों के झुंड आते और
जाते ही रहेंंगे,
कर्म पथ के गीत संघर्षी
पथिक गाते रहेंगे ।।
एक शुभ्रालोक देकर
जीवनांत सुधार दे।।
डा रामकृष्ण,गया जी ।
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