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मंगलमय हो आंगल वर्ष तुम्हें ,.........

मंगलमय हो आंगल वर्ष तुम्हें ,.........

डॉ राकेश कुमार
नहीं हमारा वर्ष मित्र ! यह अंग्रेजों का है वर्ष नया।
सारा ही पुरातन दीख रहा, नहीं कहीं उत्कर्ष नया।।


कलियों में मुरझाहट दीख रही चेहरे सबके रूखे रूखे।
चमन की रौनक गायब सारी और पेड़ खड़े सूखे सूखे।।


मन भी फीका तन भी फीका फीका सब कुछ लगता है।
बधाई तभी दी जाती है, जब नूतन सब कुछ लगता है।।


ऋषियों का चिंतन भुला , विज्ञान भी अपना भुला दिया।
सनातन को फेंका कूड़े में पश्चिम को सिर पर चढ़ा लिया।।


बधाई आपकी स्वीकार मुझे , पर थोड़ा चिंतन कर लो।
अपना अच्छा क्यों भुला रहे ? इतना तो मंथन कर लो।।


मंगलमय हो आंगल वर्ष तुम्हें, भगवान हमें सद्बुद्धि दे।
सनातन के हम भक्त बनें , मन वचन कर्म की शुद्धि दे।।




- डॉ राकेश कुमार आर्य संपादक : उगता भारत
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