भारत के लिए कितनी कारगर है अप्रेन्टिसशिप?
लेखक: श्री अतुल कुमार तिवारी,सचिव, कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय
भारत में अप्रेन्टिसशिप पर जब भी कोई चर्चा होती है तो अक्सर हमारी तुलना जर्मनी और ऐसी ही अन्य विकसित अर्थव्यवस्था वाले देशों के साथ की जाती है। ऐसे विकसित देशों में कम बेरोजगारी दर और औद्योगिक कार्यबल की अधिक उत्पादकता का श्रेय अप्रेन्टिसशिप को दिया जाता है। मार्च 2020 में डीएफआईडी (अब एफसीडीओ) के लिए डालबर्ग द्वारा किए गए एक अध्ययन ने विभिन्न सेक्टर्स में नियोक्ताओं के लिए भारत जैसे विकासशील देशों में भी लाभ-लागत अनुपात को 1.3 से 1.9 गुना तक रखा है। इस प्रकार एक आम धारणा यह बनती है कि काम करते हुए सीखते रहने के कारण अप्रेन्टिसशिप, शिक्षित होते हुए रोजगार उन्मुख होने का सबसे अच्छा रास्ता है।
माना जाता है कि जर्मनी में 4% और यूनाइटेड किंगडम में 1.7% कार्यबल की तुलना में, भारत में केवल 0.1% कार्यबल ही अप्रेन्टिसों के रूप में काम कर रहा है। अप्रेन्टिस की इतनी कम दर ही बड़े पैमाने पर भारत में अनौपचारिक सेक्टर के लिए जिम्मेदार हैं। एक अनुमान है कि हमारे यहाँ 46.6 करोड़ कामगारों (पीएलएफएस 2017-18) में से लगभग 37.5 करोड़ (80.47%) कामगार अनौपचारिक सेक्टर में काम करते हैं। इसके अलावा, शिल्प और कौशल पर आधारित अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा असंगठित सेक्टर में आता है।
यहां तक कि भारत में लगभग 9 करोड़ औपचारिक कार्यबल में से 2 करोड़ से भी कम कार्यबल ऐसे उद्यमों में काम करता है जो 30 या अधिक नियोक्ताओं वाले उद्यम हैं। उद्यम का आकार जितना बड़ा होता है, ट्रेनी और अप्रेन्टिस के लिए वहाँ नए पदों पर काम करने की सम्भावनाएं उतनी ही अधिक बढ़ जाती हैं। एक उदाहरण के लिए, जर्मनी में 21 लाख कंपनियों में 21.7% कम्पनियां लगभग 10 कर्मचारियों वाली थीं। लेकिन लगभग 20.3% कम्पनियां जर्मनी में ट्रेनी को नए पद ऑफ़र करती हैं। और यह हिस्सेदारी 1 से 9 कर्मचारियों वाले उद्यमों में लगभग 12% है जबकि यही हिस्सेदारी 500 से अधिक कर्मचारियों वाले उद्यमों में बढ़कर 81.3% हो जाती है। भारत में 9 से अधिक कर्मचारियों वाले उद्यम (या अप्रेन्टिसशिप एक्ट, 1961 के अर्थ के भीतर प्रतिषठानों) का अनुपात देखा जाए तो यह 5.85 करोड़ प्रतिष्ठानों के लिए सिर्फ 1.4% है। यह एक बड़ा कारण है कि अप्रेंटिसशिप सहित मानव-पूंजी निवेश में बहुत छोटे उद्यमों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
अर्थव्यवस्था की इस पूरी बनावट के अलावा एक बात यह भी मायने रखती है कि लोगों की अप्रेन्टिसशिप के प्रति धारणा क्या है। अप्रेन्टिसशिप को जर्मनी में युवाओं की शिक्षा के एक अभिन्न अंग के रूप में देखा जाता है। ब्रिटेन में इसी अप्रेन्टिसशिप को प्रशिक्षण के साथ वेतन वाली नौकरी के रूप में देखा जाता है। जबकि कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में इसी अप्रेन्टिसशिप को कम दाम पर उपलब्ध श्रम के रूप में देखा जाता है। दिलचस्प बात यह है कि अप्रेन्टिसों को दिया जाने वाला स्टाइपेंड ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी, स्विटजरलैंड आदि देशों में कुशल कामगारों के मेहनताने का 20-50% है जोकि श्रम बाज़ार में अप्रेंटिसों के आर्थिक पक्ष को सशक्त बनाता है। भारत में अप्रेन्टिसों को मिलने वाला स्टाइपेन्ड, अर्ध-कुशल कामगारों (आइएलओ का अनुमान) के वेतन का औसतन 80% होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि एक बड़ी अर्थव्यवस्था का निर्माण करने वाले सूक्ष्म,लघु और मध्यम उद्योगों में लगे हुए अप्रेन्टिसों से आर्थिक रूप से मिलना वाला रिटर्न इतना आकर्षक नहीं है। इससे 'ऑप्शनल' और 'डेज़िगनेटेड' ट्रेडों, अनुबन्धों और स्टाइपेन्ड के प्रसंस्करण, अनुमोदन और निगरानी प्रक्रियाओं इत्यादि के साथ भारत में अप्रेन्टिसों का प्रबन्धन करने के लिए प्रक्रियाएँ ज्यादा हो जाती हैं।
इतनी चुनौतियों के बावजूद भी, भारत में अप्रेन्टिसों की संख्या 2014-15 के 0.9 लाख से बढ़कर 2021-22 में 5 लाख से अधिक हो गई है। जैसा कि हमने ऊपर चर्चा की है, भारतीय अर्थव्यवस्था की विशेषताओं को देखते हुए हमें भारत में अप्रेन्टिसशिप के अवसरों को 2022 के अंत तक बढ़ाकर 10 लाख और 2026 तक बढ़ाकर 60 लाख तक पहुँचाना है।
अप्रेन्टिसशिप का प्रबन्धन करने में प्रतिष्ठानों द्वारा दक्षता लाभ को बढ़ाया जाना, इस दिशा में एक अधिक नियन्त्रणीय परिवर्ती है। भारत सरकार, राष्ट्रीय शिक्षुता संवर्धन योजना के तहत 25% या लगभग 1,500 रुपये प्रति अप्रेन्टिस तक की लागत को प्रतिष्ठानों के साथ साझा करती है। कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय (एमएसडीई) ने भौतिक दावा प्रस्तुत करने को हटाकर इसके स्थान पर प्रतिष्ठानों को स्टाइपेन्ड रिम्बर्समेन्ट में प्रक्रियागत देरी को कम करने के लिए अप्रेन्टिसशिप पोर्टल के माध्यम से ऑनलाइन प्रक्रिया की अनुमति दी है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर के माध्यम से सीधे अप्रेन्टिसों को ही स्टाइपेंड सपोर्ट देने का प्रस्ताव है ताकि लीकेज और देरी को रोका जा सके। प्रतिष्ठानों के लिए लेन-देन की लागत को और कम करने के लिए, अखिल भारतीय संचालन वाले उद्यम कई राज्यों के बजाय, एकल राज्य-स्तरीय अप्रेन्टिसशिप/कौशल इकाई के साथ जुड़ने में सक्षम होंगे। अप्रेन्टिसशिप योजनाओं के बीच डेटा साझा करने से उद्यम के लिए पंजीकरण प्रक्रिया को और अधिक कारगर बनाया जा सकता है। पाठ्यक्रम के युक्तिकरण की बात की जाए तो अनावश्यक कोर्स को हटा दिया गया है और अप्रेन्टिसशिप ट्रेनिंग की अवधि को प्रतिष्ठानों और सेक्टर्स की विभिन्न आवश्यकताओं को पूरा करने के विकल्पों के साथ एकसमान बनाया गया है। पाठ्यक्रम का मानकीकरण और ट्रेडों के प्रकार (डेज़िगनेटेड और ऑप्शनल) के बीच प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना, प्रतिष्ठानों को अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप अपने कोर्सों को अनुकूलित करने की अनुमति देना, ऐसे उपाय हैं जो प्रतिष्ठानों के लिए बड़ी संख्या में अप्रेन्टिसों को शामिल करना आसान बनाएंगे।
हालांकि हमारे देश में ‘ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस’ निश्चित रूप से बड़ी मददगार है लेकिन हमारे सामने मुद्दा यह भी है कि देश में अप्रेन्टिसशिप का आकांक्षात्मक मूल्य किस प्रकार से बढ़ाया जाए। इसके लिए ज़रूरी है कि अप्रेन्टिसशिप से लेकर उच्च शिक्षा तक भरोसेमंद रास्ते बनाने के साथ ही शिक्षा के पूरे ईकोसिस्टम में अप्रेन्टिसशिप को शामिल किया जाए। तभी अप्रेन्टिसशिप को वह सम्मान मिल सकता है जो अपने हाथों से सीखने और युवाओं की रोजगार क्षमता में सुधार के लिए जरूरी है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए, नए नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क के अनुसार अप्रेन्टिसशिप और मूल्यांकन के पूरा होने पर तय क्रेडिट आवंटित किए जाएंगे जिससे आगे की शिक्षा की राह और आसान हो जाएगी। इसके अलावा, अप्रेन्टिसशिप और इंटर्नशिप को माध्यमिक स्तर के बाद के स्कूल पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव भी है। उच्च शिक्षा प्रणाली भी यूजीसी के दिशा-निर्देशों के अनुसार मुख्यधारा अप्रेंटिसशिप युक्त डिग्री कार्यक्रमों के लिए तैयार हो रही है।
किसी भी सार्वजनिक नीति में आगे बढ़ने के लिए हितधारकों को सक्रिय करने की आवश्यकता होती है। देश भर में 250 से अधिक जिलों में अप्रेन्टिसशिप के प्रोत्साहन कार्यक्रमों के रूप में पूरे वर्ष, व्यापक जागरूकता अभियान शुरू किया गया है। प्रतिष्ठानों या उम्मीदवारों के किसी भी प्रश्न या समस्या का समाधान करने के लिए एक सेन्ट्रलाइज़्ड हेल्पलाइन की मदद ली जा रही है।हम ट्रेनी और प्रतिष्ठानों, दोनों के लिए अप्रेन्टिसशिप को फायदेमंद बनाने के लिए उपरोक्त सभी कार्य-बिन्दुओं पर काम कर रहे हैं ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था में भी अप्रेन्टिसशिप अपनी गहरी जड़ें जमा सके। हमारे लिए यह भी बहुत आवश्यक है कि अप्रेन्टिसशिप, सस्ते श्रम की आपूर्ति का रास्ता न बने। सभी प्रकार के कार्य-अनुभवों को अप्रेन्टिसशिप के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है। अप्रेन्टिसशिप को नियोक्ताओं और अप्रेन्टिस के बीच एक सत्यापित लिखित अनुबन्ध के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें मानदंडों के अनुसार स्टाइपेन्ड का भुगतान, गैर-उत्पादन समय प्रशिक्षण सहित अप्रेन्टिस का संरचित प्रशिक्षण और कड़ी निगरानी भी शामिल है। नियोक्ताओं के लिए अप्रेन्टिसशिप के वैल्यु प्रपोज़िशन को उच्च उत्पादकता, कम एट्रिशन और कम हायरिंग कॉस्ट के गुणात्मक पहलुओं द्वारा उभरना है। ट्रेनी के लिए, यह उचित स्टाइपेन्ड और रोजगार पाने की अधिक सम्भावनाओं के साथ एक काम करने पर आधारित शिक्षा है। आखिरकार अप्रेन्टिसशिप का सफल एवं सुखद परिणाम, सभी संबंधित हितधारकों जैसे कि अप्रेन्टिस, उद्यमों और पूरी अर्थव्यवस्था को मिलना ही चाहिए।
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