हत्या
कल
उसकी हत्या कर दी गई,
हत्यारा
कोई और नहीं
सबूतों और गवाहों के
बयानों पर विश्वास करने वाला
अंधा कानून ही था।
हत्या का मतलब
मात्र किसी हथियार से जान लेना
अथवा
जान से मार देना ही तो नहीं
अपितु
सामाजिक तथा मानसिक तौर पर
प्रताड़ित किया जाना भी तो
हत्या ही है।
कहते हैं
प्रत्येक हत्या का
कोई उद्देश्य होता है,
हाँ
हत्या का उद्देश्य था
अन्याय के विरुद्ध
अपनी आवाज़ उठाना,
निर्भीकता और सच्चाई से
बिना यह समझे
कि
सामने खडा न्याय का पक्षधर
कानून
अंधा है,
वह सुनता है आवाजें
उन चंद गवाहों की
जिनकी आँखें
जो देखती हैं
बोल नहीं सकती,
कान भी
जो सुनते हैं
बता नहीं सकते,
और मुहँ
न कुछ सुनता है
न देखता है
परन्तु वही बोलता है
जो बुलवाया जाता है।
और कानून की कलम
सबूतों के अभाव में
दिल की आवाज़ के विरुद्ध
उसकी
सामाजिक और मानसिक
हत्या कर देती है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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