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आँगन में ही जब रेखाएं खिंच जाती हैं

आँगन में ही जब रेखाएं खिंच जाती हैं,

भाई भाई में तब नफ़रतें पल जाती हैं।
बंट जाते हैं मात पिता भी दोनों घर में,
अहंकार की दौलत जब सर चढ़ जाती हैं।

अपने बच्चों की गलती पर जो परदा करते,
उनकी संतानें अक्सर, ग़लत राह चल जाती हैं।
मात पिता को ही ठोकर मार बाहर निकालती,
वृद्धाश्रम भेज उन्हें, घर पर काबिज हो जाती हैं।

जो बोओगे वही मिलेगा, शास्त्र हमें बतलाते,
नीम वृक्ष पर आम कोंपलें, कभी नहीं आती हैं।
संस्कार संस्कृति का बोध कराएँ बचपन से,
परिवार रहे खुश, मुश्किलें कभी नहीं आती हैं।

अ कीर्ति वर्द्धन
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