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नारी भाव ही सर्वोच्च है होता ,

नारी भाव ही सर्वोच्च है होता ,

नारी ही सृष्टि का ये आधार है ।
नारी ही होती सर्वोच्च जगत में ,
नारी से ही ये जगत संसार है ।।
नारी ही होती है सती सावित्री ,
नारी ही कैकयी भी बनी थी ।
नारी ही थीं कौशल्या सुमित्रा ,
नारी ही सूर्पणखा भी तनी थी ।।
नारी कारण घर यह सँवरता ,
नारी कारण घर बिखर जाता ।
जो भाई होता प्राणों से प्यारा ,
वह विरोधी बन निखर जाता ।।
शादी पूर्व जो प्राणों से प्यारा ,
वही शादी बाद हत्यारा क्यों ?
मातपिता भी आँखों के काँटे ,
शीघ्र विभाजन है प्यारा क्यों ?
नारी ही होती है लक्ष्मी शारदा ,
नारी ही होती स्वर्ण सवेरा है ।
नारी ही कैकेयी मंथरा बनकर ,
जीवन को भी देती अँधेरा है ।।
सत्य है नारी बिन नर अधूरा ,
नारी बिन कोई सपना न पूरा ।
नारी लेकर सपने भी हैं टूटते ,
नारी कारण जीवन भी सुरा ।।
महद भूमिका नारी की होती ,
बिखरे घर को भी सजाने में ।
नारी भूमिका वहाँ भी होती ,
सजे घर को भी बिखराने में ।।
पूर्णतः मौलिक एवं
अप्रकाशित रचना
अरुण दिव्यांश 
डुमरी अड्डा
छपरा ( सारण )
बिहार  ।
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