काले-गोरे नाग घूमते हाटों मैं
मिट्टी की गंधों को जाने क्या होगा।
उलझी -उलझी बातों बाली चौपाटी
धोखे ,छल की बहसों वाली परिपाटी
राहों में अंगारों की होड़ा-होड़ी
द्वार-द्वार तक आ जाने पर क्या होगा?
बातों में भी वैमनस्य के संभाषण
धरती से ऊपर -ऊपर ही आवासन
चंदनमल, अगर ,पराग उठेक्षित है लेकिन
भीतर के क्रंदन का जाने क्या होगा।
भाषा की हमजोली बाँच रही ईर्ष्या
चेतन अवचेतन के भीतर की तृष्या
अनाहूत संघर्ष्य आपदा आने पर
साहस के बंधन को जाने क्या होगा?
डा रामकृष्ण
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