जाने कितनी गलतफहमी पाल लेते हैं,
कुछ लोग तिल को ताड़ मान लेते हैं।
जूगनू से रहते रात के नीरव अंधेरे में,
उदित होते सूरज पर सवाल दाग देते हैं।
मुस्लिमो के हितों की बस साधना करते,
हिन्दु हितों पर आहें भर, प्रताड़ना करते।
संसाधनों पर हक मुस्लिमों का बताने वाले,
मदरसों मस्जिदों में सुविधाएं- सेलरी बख्सते।
कोई कहता राम का अस्तित्व नहीं था,
राम का मन्दिर भी अयोध्या में नहीं था।
बाबरी मस्जिद- आतंकियों के समर्थक,
यादवों के वंशज कह रहे, हिन्दू नहीं था।
सनातन पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं,
बलात्कारियों को निर्दोष बताते हैं।
चीन पाक से हमदर्दी एजेंडा वाले,
दंगाईयों के समर्थन मुहिम चलाते हैं।
भाषा इनकी देखिए, गुंडे मवाली की,
न्याय की बातें फकत हीला हलाली की।
गुंडों को अभय पुलिस खोजती भैंसों को,
समाजवाद की बातें परिवार रखवाली की।
अ कीर्ति वर्द्धन
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