नेता और साँप
तू तो बच्चा साँप का, तू क्या काटे मोय,
मैं हूँ नेता देश का, मैं डस लूँगा तोय।
तेरा काटा माँगता, पानी मरते वक़्त,
मेरा काटा माँगे नहीं, पानी मरने तक।
तू तो राखे एक फन, मेरे फन हज़ार,
तेरा काटा मर सके, मैं कर दूँ लाचार।
तुझसे तो डर कर रहे, सकल जगत-जहान,
मुझसे भी डरते मगर, कहते मुझको महान।
धन पर कुंडली साँप की, कहते ज्ञानी लोग,
मुझसे ज्यादा है नहीं, तुझ पर धन का योग।
तू तो कर सकता नहीं, रंगों में बदलाव,
गिरगिट को भी मात दूँ, ऐसे मेरे भाव।
तू तो बदले केंचुली, वर्ष में एक ही बार,
निष्ठा, सत्ता, केंचुली, मैं खेलूँ खेल हज़ार।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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