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बुढ़ापा

बुढ़ापा

बुढ़ापा कुरूप दिखाई देता है उन्हें
जो हर क्षण कर रहे हैं कोशिश
जवानी को पकड़ने की
जो छूट गई है उनके हाथों से
जिनके लिए जवानी जिद्दी है,
उत्तेजना से भरी है, रंगीन सपनों से सजी है
वे बुढ़ापे के सौंदर्य से हो गए हैं दूर
वे नहीं जानते,
बुढ़ापा सरल होता है
पर उसकी सरलता में बुद्धिमत्ता होती है
बुढ़ापे में शीतलता होती है
जवानी की गर्मी नहीं
बुढ़ापा, पद और प्रतिष्ठा की दौड़ में
नहीं जगाती महत्वाकांक्षा
बुढ़ापा भरा होता है
एक अपूर्व संतोष से
उसमें न बचपन की अज्ञानता होती है
न जवानी की बेहोशी
जीवन के सारे अनुभव
बुढ़ापे को निखार जाते हैं
यह सच है कि
वही आदमी जीता है
खुलकर बुढ़ापा,
कर जाता है पार
हंसते-हंसते जीवन का अंतिम पड़ाव
जिसने जवानी समग्रता से जिया है । -- वेद प्रकाश तिवारी
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